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________________ १२६ [उक्तादिविधिः स्वयंभूच्छन्दः (पूर्वभागः)। [उत्तर-अन्त-लघू त्रयोऽन्तगाः त्रिमात्राः तृतीयचगणाः रथोद्धता ॥ २२ ॥] रहुद्धआ लडहसहावस्स [रथोद्धता लटभस्वभावस्य] अंतरिक्खघरमज्झआरए कालमेहबहलंधआरए । पेच्छ गंधवहए विअंहला दारअस्स ससिअ व्व पिज्जुला ॥ २२.१॥ [अन्तरिक्षगृहमध्ये __ कालमेघबहलान्धकारे । xxxx xxx विद्युत् ॥ २२.१॥] किर सअलमुहाइपुन्चला पपर ति तगणा सुहद्दिआ ॥२३॥ [किल सकल-मुख-आदि-पूर्व-लाः । पगणोपरि त्रयस्त्रिमात्राः सुभद्रिका ॥ २३॥] [ Fol. 36 B] सुहद्दिआ पोम्मणाहस्स [सुभद्रिका पद्मनाभस्य] उअ हरइ मिअंकलेहिआ __णवजलहरकोडिलग्गिआ। सिअणलिणिमुणालवण्णिआ। णहपलअवराहदाढिा ॥२३.१॥ [पश्य हरति मृगाङ्कलेखा नवजलधरकोटिलग्ना। सितनलिनिमृणालवर्णिका नभःप्रलयवराहदंष्ट्रिका ।। २३.१ ॥] सन्वंतोउरगा गुरुदरं च । छो चा दोण्णि तमाह एक्करूअं ॥ २४ ॥ [सर्व-अन्त-उदर-गाः गुरुद्वयं च । षण्मात्रः चकारौ द्वौ तदाह एकरूपम् ॥ २४ ॥] एक्करूअं तस्सेअ [एकरूपं तस्यैव ]-- उद्धो ओगअसुद्धओ सुहोओ रत्तासोअणवल्ल[पल्लवोहो। सण्णेइ व्व उणद्धमूपि दड्ढे एत्ताहो इह होह मुत्तसोआ ॥ २४.१ ॥
SR No.023463
Book TitleSwayambhuchand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH D Velankar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1962
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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