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[उत्थक्कादयः
स्वयंभूच्छन्दः। छंदोरूएहि बिहिं जुअलं चक्कलअमेव च चऊहिं ॥ कुलअं सेसेहिं हुवे चक्कसम तेहिं तेहिं तं ॥ २३ ॥ [छन्दोरूपाभ्यां द्वाभ्यां युगलं चक्कलकमेव चतुर्भिः ।
कुलकं शेषैर्भवेत् चक्रसमं तैस्तैस्तत् ॥ २३ ॥] घत्ताछड्डणिआहिं पद्धडिआ[हिं] सुअण्णरूएहिं ॥ रासाबंधो कन्वे जणमणअहिरामओ होइ ॥२४॥ [घत्ताछड्डुणिकाभिः पद्धतिकाभिः सुवर्णरूपाभिः ।।
रासाबन्धः काव्ये जनमनोभिरामको भवति ॥ २४ ॥] एकवीसमत्ताणिहणउ उद्दामगिरु
चउदसाइ विस्साम होभ(इ) गणविरइथिरु । रासाबंधु समिद्ध एउ अहिरामअरु
लहुअतिअलअवसाणविरइ अ[इ]महुरअरु ॥ २५ ॥ [एकविंशतिमात्रानिधन उद्दामगिरः
चतुर्दशादिविश्रामो भवति गणविरतिस्थिरः । रासाबन्धः समृद्धोऽयं अभिरामतरः
लघुकत्रिकलकावसानविरचितो अतिमधुरतरः ॥ २५ ॥] जहा [यथा]--
सुरवरणरवरथुअ उरअवरपणविअंकम •मअणमहण जलहिगअरोस जाअसमदम । परमधीर जिणएव जअ णिहिवरसरणिलअ
पहअदुरिअ संतावहरण गुरुमोहविलअ ।। २५.१ ॥ [सुरवरनरवरस्तुत उरगवरप्रणतक्रम
मदनमथन xxx गतरोष जातशमदम । परमधीर जिनदेव जय xxxx निलय
प्रहतदुरित संतापहरण गुरुमोहविलय ॥ २५.१ ।।] जहा अ [यथा च]--
जइ वि ण वसुमइमग्गहें इह को वि संचरइ . ___ अइकिलेसे ससिणि सुहे अ वि जइ फुरइ । तोवि ऍहु मोरी वाणि वि लट्ठ कलाग(व)वइ
अहिणवघणपअपसरहिं अवहंसेहि रमइ ॥ २५.२ ॥
.. १. Ms. reads उरअवरणविभउचरणकम.