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________________ १०० [उत्थक्कादयः स्वयंभूच्छन्दः। छंदोरूएहि बिहिं जुअलं चक्कलअमेव च चऊहिं ॥ कुलअं सेसेहिं हुवे चक्कसम तेहिं तेहिं तं ॥ २३ ॥ [छन्दोरूपाभ्यां द्वाभ्यां युगलं चक्कलकमेव चतुर्भिः । कुलकं शेषैर्भवेत् चक्रसमं तैस्तैस्तत् ॥ २३ ॥] घत्ताछड्डणिआहिं पद्धडिआ[हिं] सुअण्णरूएहिं ॥ रासाबंधो कन्वे जणमणअहिरामओ होइ ॥२४॥ [घत्ताछड्डुणिकाभिः पद्धतिकाभिः सुवर्णरूपाभिः ।। रासाबन्धः काव्ये जनमनोभिरामको भवति ॥ २४ ॥] एकवीसमत्ताणिहणउ उद्दामगिरु चउदसाइ विस्साम होभ(इ) गणविरइथिरु । रासाबंधु समिद्ध एउ अहिरामअरु लहुअतिअलअवसाणविरइ अ[इ]महुरअरु ॥ २५ ॥ [एकविंशतिमात्रानिधन उद्दामगिरः चतुर्दशादिविश्रामो भवति गणविरतिस्थिरः । रासाबन्धः समृद्धोऽयं अभिरामतरः लघुकत्रिकलकावसानविरचितो अतिमधुरतरः ॥ २५ ॥] जहा [यथा]-- सुरवरणरवरथुअ उरअवरपणविअंकम •मअणमहण जलहिगअरोस जाअसमदम । परमधीर जिणएव जअ णिहिवरसरणिलअ पहअदुरिअ संतावहरण गुरुमोहविलअ ।। २५.१ ॥ [सुरवरनरवरस्तुत उरगवरप्रणतक्रम मदनमथन xxx गतरोष जातशमदम । परमधीर जिनदेव जय xxxx निलय प्रहतदुरित संतापहरण गुरुमोहविलय ॥ २५.१ ।।] जहा अ [यथा च]-- जइ वि ण वसुमइमग्गहें इह को वि संचरइ . ___ अइकिलेसे ससिणि सुहे अ वि जइ फुरइ । तोवि ऍहु मोरी वाणि वि लट्ठ कलाग(व)वइ अहिणवघणपअपसरहिं अवहंसेहि रमइ ॥ २५.२ ॥ .. १. Ms. reads उरअवरणविभउचरणकम.
SR No.023463
Book TitleSwayambhuchand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH D Velankar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1962
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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