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________________ स्वयंभूच्छन्दः। [उत्थक्कादयः अह अडिल्ला जहा [ अथ अडिल्ला यथा]-- अक्कपलासबिल्लुअडरूसउ धम्मिअ एमएम महुअरु तूसउ । बुद्धाइच्च बम्ह हरि संकर जो मेराउ देउ हरिसंकरु ॥ २०.४ ॥ [ अर्कः पलाशो बिल्वः अटरूषो (वा) धार्मिक एवमेव मधुकरस्तुष्टः । बुद्ध आदित्यो ब्रह्मा हरिः शंकरः यो मदीयो देवो हर्षकरः ।। २००४ ।। ] मत्ता जहा [ मात्रा यथा]-- जअहिं जिणवर सोम अकलंक । __ सुरसण्णुअ विगअभअ। राअरोसमअमोहवजिअ॥ मअणणासण भवरहिअ । विसअ सअल तइं देव णिवजिअ ॥ २०.५॥ [ जय जिनवर सौम्य अकलङ्क सुरसंनुत विगतभय । रागरोषमदमोहवर्जित मदनशासन भवरहित । विषयाः सकलास्त्वयि देव निमग्नाः ॥ २०.५ ॥] पद्धडिआ जहा [ पद्धतिका यथा ]-- जिणणामे मअगल मुअइ दप्पु केसरि वस हो ण डसइ सप्पु। , जिणणामे ण डहइ धअधअंत हुअवह जालासअपजलंत ॥२०.६॥ [जिननाग्ना मदगलो मुञ्चति दर्प केसरी वशो भवति न दशति सर्पः । जिननाम्ना न दहति धगधगन् __ हुतवहो ज्वालाशतैः प्रज्वलन् ।। २०.६ ॥] जिणणामे जलणिहि देइ थाहु . आरपणे वण्णु ण वधइ वाहु । जिणणामे भवसअसंखलाई टुटुंति होति खण मोक्कलाई ॥ २०.७॥
SR No.023463
Book TitleSwayambhuchand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH D Velankar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1962
Total Pages292
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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