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App.!-गाथालक्षणम्
दूहालक्खणं जहा
चउदह मत्ता दुन्नि पय
पढमय तइयय हुंति । बारह मत्ता दो चलण
दूहालक्खण कंति ॥ ८२॥ उदाहरणं
लद्वउ मिसु भमंतइण
रयणायर चंदेण । जो झिज्झइ झिज्झंतइण
वड्ढइ वड्ढंतेण ।। ८३ ॥ उवदूहालक्खणं जहा
तेरह मत्ता दुन्नि पय
पढमय तइयय हुंति । बारह मत्ता अन्न दुइ
उवदूहउ इहु कति ॥ ८४ ।। उदाहरणं
नंदउ वीरजिणेसरह
धरखुत्ती नहपंति । दंसंती इव संगमह
___ नरय निरंतर गुत्ति ॥ ८५॥ भवदूहालक्खणं जहा
बारह मत्ता विसम पय
सम पय चउदह मत्त । इहु अवदूहउ पंडियहु
___ अन म करिसहु वत्त ।। ८६ ॥ उदाहरणं जहा
इक सलूणा सावलि
तुय थण जे संमुहय थिय । जेहिं न वंका वयणइ
लग्गंतेहि नहेहिं किय ।। ८७ ॥ हे कान्ते एतद् दोहदलक्षणम् ॥ ८२ ॥ हे कान्ते जानीहि ।। ८४ ॥ वीरजिनेन्द्रस्य कायोत्सर्गस्थितस्य धरायां पृथ्व्यां निलीना नखपङ्क्तिर्नन्दतु । उत्प्रेक्ष्यते । संगमकाभिधानस्य अभव्यस्य नरके निरन्तरं गुप्तिं नरके निश्चलनिवासं दर्शयतीव। (संगमस्य प्रभोरुपसर्गकर्तुळन्तरदेवस्य नरकनिरन्तरमार्ग दर्शयतीव E) ॥ ८५ ॥ स्तनयोः संमुखं ये पुरुषाः स्थिताः तैर्मुखं न तथा वक्रीकृत नखैर्लग्गैर्यथा मुखं तिर्यक् कृतं तथा । (यौ स्तनौ संमुखौ स्थितौ न तु पराङ्मुखौ जातौ । अर्थात् सुरतसंग्रामवेलायाम् । याभ्यां स्तनाभ्यां नखैर्लगद्भिरपि वक्रौ वदनौ (!) न कृतौ E) ॥ ८७ ॥
८२.१ चउदस E; तेरस G; २ पढमइ ABC; पढमतझ्यय D; ३ ग्यारह G; ४ लक्खणु D; ८३.१ भमंतएण AB: भमंतयण EFG; २ रयणायरो D: ३ झिज्झंतएण AB; ८४.२ पढमइ तइयइ ABC; ८५.३ उव संगमह DF; ८६ अवदूहालक्खणं जहा dropped in ABCF; ८७.१ सामलि A; २ तूय A; संमुह पंथिय A: ३ जेह न A; वंकय बयणवय F; ४ नतेहिं B; न तेहि य किय D; नहेहि कथ A.