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________________ सवृत्तिकः कविदर्पणः [चतुर्थोद्देशे नजुगलरचउक्कनिप्फन्निया वनिया तारया ॥८५॥ भो रनना नसा नवहि निसुणह भमरवयं ॥८६॥ नयुगलरचतुष्कनिष्पनिका तारका वर्णिता ॥ ८५॥ भो रनना नसौ भ्रमरपदं निशृणुत । नवभिर्यतिः ॥८६॥ धृतिः ॥१८॥ तरुणीवयणिंदुमिमं कहियं सगणा छ तहा गो॥८७॥ मो सो जो सतता गुरू य रविहिं सद्दलविक्कीडियं ॥ ८८॥ षट् सगणास्तथा गस्तरुणीवदनेन्दु कथितमिदम्॥८७॥ मसौ जः सतता गुरुश्च शार्दूलविक्रीडितम् । द्वादशभिर्यतिः ॥ ८८ ॥ अतिधृतिः ॥१९॥ गा लहू निरंतरा जहिं तु वीस तं खुजाण चित्त नाम ॥ ८९॥ वुत्ता सत्तद्गेणं मरभनयभला गंता सुवयणा ॥९०॥ यत्र गा लघवो निरन्तरा विंशतिस्तन्निश्चयाज्जानीहि चित्रं नाम ॥ ८९॥ मरभनयभला गान्ता सुवदना उक्ता । सप्तभिः सप्तभिर्यतिः ॥९०॥ कृतिः ॥२०॥ बुहयणसम्मया नजभजा जदुगं रगणो य सिद्धिया ॥९१॥ आसेहिं भूधरेहिं मरभनययया सद्धरा नाम नेया ॥९२॥ नजभजा जद्विकं रश्च बुधजनसंमता सिद्धिका ॥९१॥ मरभनयययाः स्नग्धरा नाम ज्ञेया । अश्वैर्भूधरैर्यतिः ॥९२॥ प्रकृतिः ॥२१॥ सत्तभनिम्मियमंतपइट्टियएकगुरू च लयाकुसुमं ॥९३॥ भद्दयमुल्लवन्ति विउसा भरा नरनरा नगा य दसहिं ॥९४॥ सप्तभिर्निर्मितमन्तप्रतिष्ठितैकगुरु च लताकुसुमम् ॥९३॥ भरौ नरनरा नगौ च भद्रकमुल्लपन्ति विद्वांसो [दशभिः] ॥ दशभिर्यतिः ॥९४॥ आकृतिः ॥२२॥ रो नरा जरनरा लहूगुरू तहा जहिं तमिह बिंति चित्तयं ॥९५॥ मत्तकीला मो मो तो नो सिहिनपरलहुगुरु भुयगइसुहिं ॥९६॥ तथा यत्र रो नरौ जरनरा लघुर्गुरुस्तदिह ब्रुवन्ति चित्रकम् ॥९५॥ मो मस्तो नत्रिनपरलघुगुरुर्मत्तक्रीडा । भुजगैरष्टभिरिषुभिः पञ्चभिर्यतिः ॥९६॥ विकृतिः ॥२३॥ नगणदुगरछक्कयं मेहमालत्ति छंदं पयंपति छंदचया ॥९७॥ बिंति सुभद्दयनामयछंदमिहं भगणेहिं बुहा किर अट्टहिं ॥९८॥ - नविकरषट् मेघमालेति च्छन्दश्छन्दोज्ञाः प्रजल्पन्ति ॥९७॥ भगणैरष्टभिः किल सुभद्रकानामकं च्छन्द इह बुधा ब्रुवन्ति ॥९८॥ संकृतिः ॥२४॥
SR No.023461
Book Titlekavidarpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH D Velankar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1962
Total Pages230
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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