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प० ४१-८४]
सवृत्तिकः कविदर्पणः
बाणा मा जस्सितं कामक्कीला नामं नायव्वं ॥ ६७ ॥ चउदसलहुयपरगुरु ससिकला ॥ ६८ ॥ रो जरा जरा गणा जहिं तमित्थ तोणयं ॥ ६९ ॥ हवइ पभद्दकं नजभजा तहेव रो ॥ ७० ॥ आसेहिं चंदलेहा छंद यो मरा मो य यो यो ॥ ७१ ॥ ननमययगणड्ढा मालिणी पन्नगेहिं ॥ ७२ ॥
एसा चित्ता वृत्ता जीए तिन्नि मा किंच दो या ॥ ७३ ॥
यस्मिन्पञ्च मास्तत्कामक्रीडा नाम ज्ञातव्यम् ॥ ६७ ॥ चतुर्दशलघुकपरगुरुः शशिकला ॥ ६८ ॥ यत्र रो जरौ जरौ गणास्तदत्र तोणकम् ॥ ६९ ॥ नजभजास्तथैव रः प्रभद्रकं भवति ॥ ७० ॥ मरौ मश्च यैौ चन्द्रलेखाच्छन्दः । सप्तभिर्यतिः ॥ ७१ ॥ ननमययगणाढ्या मालिनी [ पन्नगैः ] | अष्टभिर्यतिः ॥ ७२॥ पन्नगैरिति वर्तते । यस्यां त्रयो माः किंच द्वौ यावेषा चित्रा उक्ता ॥ ७३ ॥ अतिशक्वरी ॥ १५ ॥
स पंचचामरो जहिं लहूगुरू निवा कमा ॥ ७४ ॥ तो यस्स अंतर कण गेण चित्तमुत्तं ॥ ७५ ॥ आसगई उण पंचहि भेहिं तहा गुरुणा ॥ ७६ ॥ परिकहिया नजा भजरगा य वाणिणीए ॥ ७७ ॥ नजरभभा गुरू जहिं सा मणिकप्पलया ॥ ७८ ॥ भण दुगुणवसुलहुमचलदिहिमिह ॥ ७९ ॥
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यत्र लघुगुरवः क्रमात् षोडश स पञ्चचामरः ॥ ७४ ॥ पूर्वोक्तस्य तोणकस्यान्तके कृतेन गेन चित्रमुक्तम् । पञ्चचामरव्यःययः सगुरुरित्यर्थः ॥ ७५ ॥ पञ्चभिर्भैस्तथा गुरुणा अश्वगतिः पुनः ॥ ७६ ॥ नौ भजरगाश्च वाणिन्यां परिकथिताः ॥ ७७ ॥ नजरभभा गुरुर्यत्र सा मणिकल्पलता ॥७८॥ द्विगुण सत्रः षोडश लघवो यस्यां तामचलधृतिमिह भण ॥ ७९ ॥ अष्टिः ॥ १६॥
मंदता चउहिं रिउहिं मो भना तो तगा गो ॥ ८० ॥ रिउहिं चउहिं नो सोमो रो सला हरिणी गुरू ॥ ८१ ॥ रसेहिं निद्दिट्ठा यमनसभला गो सिहरिणी ॥ ८२ ॥ वसूहिं पुहवी जसा जसयला तहंते गुरू ॥ ८३ ॥ पंतिहि वंसपत्तपडियं भरनभनलगा ॥ ८४ ॥
मो भनौ तस्तगौ गो मन्दाक्रान्ता । चतुर्भिः षभिश्च यतिः ॥ ८० ॥ नः सोमो रः सलौ गुरुर्हरिणी । षड्भिश्चतुर्भिश्च यतिः ॥ ८१ ॥ यमन सभलगैः शिखरिणी निर्दिष्टा । षड्भिर्यतिः ॥ ८२ ॥ जसौ जसयलास्तथान्ते गुरुः पृथ्वी । अष्टभिर्यतिः ॥ ८३ ॥ भरनभनलगा वंशपत्रपतितम् | 'पंतिहि 'त्ति दशभिर्यतिः ॥ ८४ ॥ अत्यष्टिः ॥ १७ ॥