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________________ सवृत्तिकः कबिदर्पणः [चतुर्थोद्देशे युधिष्ठिरो धर्ममयो महाद्रुमः स्कन्धोर्जुनो भीमसेनोस्य शाखा । माद्रीसुतौ पुष्पफले समृद्धे मूलं कृष्णो ब्रह्म च ब्राह्मणाश्च ॥४०॥ तृत्रि)ष्टुप् ॥११॥ सा इंदवंसा उ तता जरा जहिं ॥४१॥ मुणेह वंसत्थमिणं जता जरा ॥४२॥ जत्थ रा हुंति चत्तारि सा सग्गिणी ॥४३॥ जहिं वेयया तं भुयंगप्पयायं ॥४४॥ चउसं मुण तोडयमित्थ पुणो ॥४५॥ दुयविलंबिय नाम नभा भरा ॥४६॥ पमियक्खरा सजससेहिं कया ॥४७॥ जभा जरा जहिमिमा पियंवया ॥४८॥ नयनयबद्धा कुसुमविचित्ता ॥४९॥ पमुइयवयणा नना रद्दुगं ॥५०॥ इह हि नजेहि जरेहि मालई ॥५१॥ निसुणह तामरसं नजजा यो ॥५२॥ रवी लगा कमा वसंतचच्चरं ॥५३॥ दो मा या नेया पंचहिं वेसएवी ॥५४॥ जलुद्धयगई छहिं जसजसा ॥५५॥ इत्थं पुण तो यो तो यो मणिमाला ॥५६॥ नदुगमिह पुडो मो यो वसूहिं ॥५७॥ यत्र ततौ जरौ सा इन्द्रवंशा पुनः ॥४१॥ जतौ जरौ वंशस्थमिदं जानीत ॥४२॥ यत्र राश्चत्वारः सा स्रग्विणी ॥४३॥ यत्र याश्चत्वारस्तद्भुजंगप्रयातम् ॥४४॥ चतुःसं तोटकमिह पुनर्जानीहि ॥४५॥ नभौ भरौ द्रुतविलम्बितं नाम ॥४६॥ सजससैः कृता प्रमिताक्षरा ॥४७॥ यत्र जभौ जरौ प्रियंवदेयम् ॥४८॥ नयनयग्रथिता कुसुमविचित्रा ॥४९॥ ननौ रद्विकं प्रमुदित. वदना ॥५०॥ नजाभ्यां जराभ्यामिह हि मालती ॥५१॥ नजजा यश्चेत्तामरसम् ॥५२॥ द्वादश लगाः क्रमाद्वसन्तचत्वरम् ॥ ५३॥ द्वौ मौ यौ ज्ञेयौ पञ्चभिर्वैश्वदेवी ॥ पञ्चभिर्यतिः ॥५४॥ जः सो जसा(सौ) जलोद्धतगतिः । षड्भिर्यतिः ॥५५॥ षड्भिरिति वर्तते । इह पुनस्तोयस्तोयो मणिमाला ॥५६॥ इह नाद्विकं मो यः पुटः । अष्टभिर्यतिः ॥ ५७॥ जगती ॥१२॥ मो नो जो पहरिसिणी रगा सिहीहिं ॥५८॥ मो तो यो सो गो चउहि मत्तमयूरं ॥५९॥ जभा सजा गुरु रुइरा भणिज्जए ॥६०॥ नदुगतरगणा गो य चंदियाए ॥६१॥ ___मो नो जो रगौ प्रहर्षिणी [शिखिभिः] ॥ त्रिभिर्यतिः ॥ ५८ ॥ मस्तो यः सो गो मत्तमयूर [चतुर्भिः] ॥ चतुर्भिर्यतिः ॥५९॥ चतुभिर्यतिरिति वर्तते । जभौ सजौ गुरुः रुचिरा भण्यते।।६०॥ नद्विकतरगणा गश्च चन्द्रिकायाम् ॥६१॥ अतिजगती ॥१३॥ तो भो वसंततिलया जदुगं गुरू दो ॥६२॥ जलहिनपरगुरुदुगमुवचित्तं ॥ ६३॥ बाणेहिं मो तो नसदुगुरु असंबाहा ॥६४॥ इसिहि ननरसा लगा अक्राइया॥६५॥ पहरणकलिया ननभनलगुरू ॥६६॥ तो भो जद्विकं द्वौ गुरू वसन्ततिलका ॥६२॥ चतुर्नगणपरगुरुद्विकं उपचित्रम् ॥६३॥ [बाणैः] मस्तो नसद्विगुरुरसंबाधा ॥ पञ्चभिर्यतिः ॥६४॥ [ऋषिभिः] ननरसा लगौ अपराजिता । सप्तर्भिर्यतिः ॥६५॥ ऋषिभिरितिः वर्तते । ननभनलगुरवः प्रहरणकलिका ॥६६॥ शक्वरी ॥१४॥
SR No.023461
Book Titlekavidarpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH D Velankar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1962
Total Pages230
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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