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________________ यह एक साधारण नियम भी है किकरत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान । रसरी आवत जातते, शिल पर परत निसान ।।६।। जैसे—बार बार कुए पर रस्सी के आने जाने से पत्थर के ऊपर निशान पड़ जाता है, उसी प्रकार मूर्ख मनुष्य भी अभ्यास को करते-करते विद्वान् बन जाता है। कई जगह सुना जाता है कि अमुक मनुष्य मूर्खकुल में उत्पन्न होकर अभ्यास के करने से सर्वत्र प्रतिष्ठा पाकर एक नियन्ता बन गया। इसमें तो कोई संदेह ही नहीं है, कि अभ्यास के आगे कोई कार्य दुःसाध्य हो, क्योंकि अभ्यास की प्रबलता से निर्बल बलवान्, निर्गुणी गुणवान्, निर्धनी धनवान्, मूर्ख विद्वान्, सरागी वीतराग बन जाता है, अतएव यदि मनुष्य सच्चे मन से धार ले तो तीन भुवनपति—योगीन्द्र बन सकता है, अभ्यास के जरिये वाञ्छित वस्तु की प्राप्ति होते देर नहीं होती, इसी से कहा जाता है कि-'अभ्यासो हि कर्मसु कौशलमावहति' अर्थात् अभ्यास संसार में सब कुशलता को परिपूर्ण रूप से धारण करता है। जो लोग अभ्यास के शत्रु हैं वे लोग अभागी हैं, उन्हें किसी सद्गुण की प्राप्ति नहीं हो सकती, और न वे किसी उन्नति मय मार्ग पर आरूढ़ हो सकते हैं। अभ्यास टेव पाड़ना, परिचय करना, गिनती करना, भावना–पुनः पुनः परिशीलन (विचार) करना। अभ्यास से ही सकलक्रिया में कुशलता प्राप्त होती है, यह बात लिखना, पढ़ना, गिनना, नृत्य करना, वगैरह सर्व कलाओं में अनुभव सिद्ध है। कहा है कि अभ्यास से ही संपूर्ण कला और क्रिया आती हैं, तथा अभ्यास से ही ध्यान मौनव्रत आदि क्रियाएँ सहज में कर सकते हैं, अभ्यास से कौन बात होना कठिन है ? निरन्तर विरति परिणाम का अभ्यास करने से परलोकगमन होने पर भी अभ्यास का संस्कार जमा रहता है। इस पर शास्त्रकारों ने अनेक उदाहरण दिये हैं लेकिन यहाँ एक दो उदाहरण (दृष्टान्त) दिखाये जाते हैं कि “एक अहीर अपनी गौ के बच्चे को उठा कर नित्य जंगल में ले जाया करता था और शाम को फिर घर लाता था इसी तरह श्री गुणानुरागकुलक ६१
SR No.023443
Book TitleGunanuragkulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashak Trust
Publication Year1997
Total Pages200
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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