SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभ्यास करते करते दो-तीन वर्ष के बैल को भी वह अहीर उठाकर ले जाता और ले आता था।' 'एक राजकुँवर हाथी के बच्चे को प्रातः समय उठ कर निरन्तर उठाया करता था, इसी तरह नित्य उठाने का अभ्यास करने से वह बड़ा होने पर भी उस हाथी को हाथों में ऊँचा उठा लेता था' इसी से कहा जाता है कि अभ्यास से सब कुछ सिद्ध हो सकता है अभ्यास शब्द ध्यान और एकाग्रतापूर्वक चित्त को स्थिर रखना इन अर्थों में भी है। सांसारिक वृत्ति से विरक्त चित्त को स्वपरिणाम में स्थापित करने का प्रयत्न करना उस का नाम 'शुद्ध अभ्यास' है। मैत्री आदि का मूलाधान (वीजस्थापन) युक्त और गोत्रयोगी व्यतिरिक्त जो कुलयोगी आदि, उनको प्रायः शुभ अभ्यास होता है। जिसने योगियों के कुल में जन्म पाया है और उनके धर्मानुकूल चलता है, उसको कुलयोगी समझना चाहिये। सामान्यतः जो उत्तम भव्य किसी के ऊपर द्वेष नहीं रखने वाला, दयालु, नम्र, सत्यासत्य की पहचान करने वाला और जितेन्द्रिय हो उसको 'गोत्रयोगी' कहते हैं। किन्ही आचार्यों ने तीन प्रकार का अभ्यास माना है। सतताभ्यास १, विषयाभ्यास २, और भावाभ्यास ३। माता-पिता आदि का विनय आदि करने को 'सतताभ्यास' कहते हैं, मोक्षमार्ग में श्रेष्ठतम (नायक) श्री अरिहंत भगवान की वारंवार पूजनादि में प्रवृत्ति को 'विषयाभ्यास' कहते हैं, भवभ्रमण से उद्विग्न होकर सम्यग् दर्शनादिक रूप भावों का पुनः पुनः परिशीलन (विचार) करने को 'भावाभ्यास' कहते हैं। यहाँ निश्चयनयानुसार सतताभ्यास और विषयाभ्यास ये दो युक्त नहीं हैं ? क्योंकि माता-पिता आदि का वैयावृत्यादि स्वरूप सतताभ्यास करेंगे तो सम्यग्दर्शनादि के आराधन का अभ्यास न होने से धर्मानुष्ठान नहीं सध सकता, और अर्हदादि का पूजन स्वरूप विषयाभ्यास करने पर भावसहित भववैराग्य नहीं होने से धर्मानुष्ठान की मर्यादा नहीं प्राप्त होती। अतएव परमार्थोपयोग रूप धर्मानुष्ठान होने से निश्चय नय के द्वारा भावाभ्यास ही आदर करने योग्य है। और व्यवहारनय से तो ६२ श्री गुणानुरागकुलक
SR No.023443
Book TitleGunanuragkulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashak Trust
Publication Year1997
Total Pages200
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy