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________________ (५६) वन्नतियं वनबा-खंबणमालंबणं तु पमिमाई॥ जोगजिणमुत्तिसुत्ती-मुद्दानेएणं मुद्दतियं ॥ १४ ॥ . शब्दार्थः-वर्णालंबन,अर्थालंबन, अने प्रतिमालंबन एत्रण वर्ण त्रिक जाणवा. तेमा प्रतिमादिक शब्दथीनाव अरिहंतादिनुं तथा स्थापनादिकनुं ग्रहण करवं. वलो योगमुसा, जिनमुखा अने मुक्तासुक्तिमुजा एवा मुजाना नेदथी मुमात्रिक जाणवू. ॥१४॥ प्रथम योगमुशनुं स्वरूप कहे . अनमंतरिअंगुलि-कोसागारेदि दोहिं हहिं ॥ पिहोवरि कुप्परिसं-ठिएहिं तह जोगमुद्दति ॥१५॥ शब्दार्थः-परस्पर बन्नेहाथनी दस यांगुली अंतरित करेला कमलना मोजाना आकारवाला तेमज पेटनो उपर बने कोणोर्ड मूकेली एवा बे हाथ करीने रहे. ते जोगमुसा कहेवाय जे. १५ हवे जिनमुशनुं लदण कहे . चत्तारि अंगुलाई, पुर कणाइं जब पचिमन॥ पायाणं उस्सग्गो, एसा पुण दोश जिणमुदा ॥१६॥ शब्दार्थः--वली जेमां पगना श्रागला पहेंचाने परस्पर चार श्रांगलनो श्रांतरो राखीने अने पाठली पानीनी वाजुनो कांश उडो श्रांतरो राखीने जे कानस्सग्ग करवो ए जिनमुखा होय. शांगलातरो राखीने जता शुक्ति मुशा का नआ दबा मुत्तासुत्तीमुद्दा, जब सुमा दोवि गन्निा दबा ॥ ते पुण निलामदेसे, लग्गा अन्ने अलग्गति ॥१७॥ शब्दार्थः-जेमा बन्ने पण दाथ सरखी रीते गर्जित राखीथ ने ते बन्ने हाथ ललाटना मध्ये लगाड्या होय (अहिं को याचा यने मते) न लगाउया होय तोपण मुक्ताशुक्तिमुना कहेवाय .
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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