SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ P (३३) शब्दार्थः-लोकाकाशना प्रदेश, उत्सर्पिणीना समय अने अणुभाग बंधना सर्व स्थानक तेम तेम अनुक्रम मरणे करीने ते क्षेत्रादि स्पर्शेला होय ते क्षेत्रादि स्थूल सूक्ष्म पक्ष्योपम थायं. ___हवे पुल परावर्त्तनुं मान कहे . उस्सप्पिणी अणंता, पुग्गलपरिअड मुणेअवो ॥ ते पंतातीअघा, अणागयका अणंतगुणा ॥॥ शब्दार्थः-अनंती उत्सर्पिण अने अवसर्पिणी जाय ए पुल परावर्त काल जाणवो. अनंत एवा ते पुनपरावर्त काल गया अने अनंतगुणा जाशेः ॥ ७ ॥ हवे ब ऽव्य दश द्वारे कहे .. परिणामि जीव मुत्तं, सपएसा एक खित किरिाय॥ णिचं कारण कत्ता, सवगय श्यर अपवेसे ॥७॥ शब्दार्थः-१ जीव, २ पुमल, ३ धर्म, ४ अधर्म, ५ श्राकाश अने ६ काल. ए ब अव्यमां जीव अने पुनल परिणामी, जीव अन्य जीव, पुत्र अव्य मूर्तिमंतरूपी, काल विनाना पांच अव्य सप्रदेशी, धर्म श्रधर्म तथा आकाश ए त्रण एक, आकाश केत्र, जीव अने पुजल सक्रीय, धर्म अधर्म आकाश अने काल ए चार नित्य, जीव विना पांच कारण, जीव कती, आकाश सर्वगत, अने श्राकाश विना बाकोना पांच जव्य एक बीजामा मली शकता नथी माटे प्रवेशा रही . ॥ ए॥ ॥इति नवतत्व. ॥ Rec 2020 अथ चोवीश दंडक. मंगलाचरण पूर्वक कर्त्तव्य कहे . नमिलं चनवीसजिणे, तस्सुत्तवियारखेसदेसा॥
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy