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________________ ... हबे सम्यक्त्वनुं स्वरूप कहे ... सवाइ जिणेसर ना-सिआइं वयणा नन्नदा हुँति ॥ बुद्धि जस्स मणे, सम्मत्तं निचलं तस्स ॥३॥ शब्दार्थः-" सर्व जिनेश्वरे कहेलां वचनो खोटां न होय.” एवो बुद्धिजे माणसना मनमा होय . तेने सम्यक्व निश्चल बे, एम जाणवु. ॥ ३ ॥ हवे सम्यक्त्व पाम्यानुं फल कहे . अंतोमुहुत्तमित्त-पि फासि हुआ जेहिं सम्मत्तं ॥ तेसिं अवठ्ठपुग्गल, परिअहो चेव संसारो ॥४॥ शब्दार्थः-जेए एक अंतर्मुदत मात्र पण सम्यक्त्व फरस्युं , तेमने संसार थर्डपुजन परावर्त निश्चे थाय बे. ॥४॥ . हवे आठ प्रकारे पुल परावर्त कहे . दवे स्कित्ते काले, नावे चनद दूह बायरो सुदमो ॥ दो अणंतुस्सप्पिणि, परिमाणो पुग्गलपरहो ॥७॥ शब्दार्थः-व्य, क्षेत्र, काल श्रने नाव ए चार जेद, ते चार नेदना सूक्ष्म अने बादर एवा बे नेदथी अनंत उत्सर्पिणी परिमाण एवो जे काल ते पुजन परावर्त होय . ॥ ५ ॥ उरलाइसत्तगेणं, एग जिउ मुअ फुसिय सवअणु॥ जित्तिकालि स थूलो, दवे सुहुमो सग्गनयरा॥६॥ - शब्दार्थः-एक जीव उदारादिक सातेनी वर्गणाने स्पर्श करीने सर्व प्रमाणु प्रत्ये जेटलो काल मूके, ते थूल अव्व पुजा परावर्त काल थाय. अव्यथी सूक्ष्म सात बीजी वर्गणा जाणवी. खोगपएसोसप्पिणि-समया अणुनागबंधहाणे य॥ तहतह कममरणेणं, पुछा खित्ता थुखियरा san
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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