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________________ (२०) एक पखवामोया सुधी होय बे. तेमां अनंतानु बंधी कषाय न• • रक गतिरूप फल श्रापेले. अप्रत्याख्यानी कषाय तिथंच गतिरूप फल आपे बे, प्रत्याख्यानी कषाय मनुष्य गतिरूप फल अने संजलनो कषाय देवगतिरूप फल थापे . वली ते चारे कषायो अनुक्रमे समकीतने, अणुव्रतने, सर्व विरतिने अने यथाख्यात चारित्रने घात करनारा . ॥ २५ ॥ जलरेणु पुढवि पञ्चय--राईसरिसो चनविदो कोहो । तिणसलयाकहीअ-सेलरनोवमो माणो ॥२६॥ शब्दार्थः-जलमां, रजमां, पृथ्वी उपर अने पर्वतनपर करेली रेखा सरखो क्रोध चार प्रकारनो डे अने नेतरना, काष्टना, हामकाना अने पथ्थरना स्थंन सरखो मान ले. ॥२६॥ माया वलेहिंगोमुत्ति-मिंढसिंगघणवंसिमूलसमा ॥ . लोहो दलिद्द खंजण-कदमकिमिरागसारिनो ॥॥ शब्दार्थः-माया वासनो बगल, वृषनर्नु मूत्र, बोकमार्नु सिंगहुँथने नीविम एवा वांसना मूल सरखो . वखो लोन हलदर, गामानी मली, कादव अने करमजी रंग सरखो .२७ जस्सुदया दो जिए, हासरश्अरईसोगनयकुबा ॥ सनिमित्तमन्नदा वा, तं इह दासाईमोहणियं ॥श्न॥ शब्दार्थः-जोवने जेना उदयथ। निमित्त सहित अथवा निमित्त विना हास्य, रति, थरति, शोक, नय अने गंडा होय . तेने थहिं हास्यादिक मोहनीय जाग. ॥२०॥ पुरिसि बी तदुनयंप, अहिलासो जवसा हव सोउ। बीनरनपुंवेउदन, फुफुमतणनगरदाहसमो ॥ ७ ॥ र शब्दार्थः-जे कर्मना वशथी पुरुषनो, स्त्रोनोथने ते बन्नेनो
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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