SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७ ) श्रजश नामकर्म. या स्थावर दशक त्रस दशकथी विपरीत अर्थवाला बे ॥ २० ॥ वे बीजा दर्शनावरणी कर्मना नव जेद कहे बे. चदिति चर, सेसिंदिन हि केवलेदिं च ॥ दंसणमिह सामन्नं, तस्सावरणं तयं चनहा 119211 शब्दार्थः - चक्कुदर्शन चक्रुदर्शन, अवधिदर्शन अने केवलदर्शन. या ठेकाणे दर्शन ते सामान्यज्ञान. ते ज्ञाननुं जे आवर्ण, ते तेनाज नामथ चार प्रकारनुं छे. ॥ २१ ॥ सुहवोहा निद्दा, निद्दानिदा य डुकपमित्रोहा ॥ पयला विविस्स, पयलपयला न चंकम ॥२३॥ शब्दार्थः - सुखे जगाय ते निद्रा, डुःखे जगाय ते निद्रा निद्रा, उजा उजा तथा बेना बेठा नंघे ते प्रचला अने हालता चालता उंघे ते प्रचला प्रचला कहेवाय. ॥ २३ ॥ दिचितिप्रकरणी, बोपदी व्यश्च क्विप्रधवला ॥ एवं जिणेहिं जणियं वित्तित्सनं दंसणावरणं ॥ २४॥ शब्दार्थः - दिवसे चिंतवेला कार्यने (रात्री ये धमां) करनारी श्रीदी नामनी निद्रा की वासुदेवथी बल वाली बे. श्राप्रमाणे जिनेश्वरोए उमीदार समान दर्शनावरण कह्युं बे. ॥२४॥ ca कषायनी स्थिति तथा फल कहे बे. जावजीववरिसचनमा - स परकग्गानिश्यतिरियनरमरा ॥ समाणु सब विरइ -- प्रदरकायचरित घायकरा ॥२५॥ शब्दार्थः - अनंतानुबंधी कषायनी स्थिति जोवीत सुधी, प्रत्याख्यानी कषायनी स्थिति एकवर्ष सुधी, प्रत्याख्यानी कषायनी स्थिति चारमास सुधी, संजलना कपापनी स्थिति
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy