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________________ ( ११ ) चालणं विहारेण, मद्दवेस जवेषयं ॥ ११ ॥ लाघवेणं च खंतीए, गुत्ती मुत्ती अत्तरे ॥ संजमेण तवेणंच, संवरेणं मणुत्तरे ॥ १३ ॥ अग गुण सयाइने, धम्म सुक्काण कायए ॥ घाइरकरण संजाण, अांतवर केवली ॥ १४ ॥ वीयराय निग्गंथे, सबन्नु सङ्घदंसणे ॥ देविंद दाविं देहिं; निव्वत्तिय महामहे ॥ १५ सव्वं जासाणुगाएय, जासाए सव्व संसए ॥ जुगवं सव्वजीवाणं, बिंदिन निन्नगोयरे ॥ १६ ॥ दिए सुदेय निस्सेय, कारए सव्व पाणिं ॥ ॐ महव्वाणि पंचेव, पन्नवित्ता सजावणे ॥ १७॥ संसारसारं बुड्ड, जंतुसंतारा तारए ॥ जाणुव्व देसियं तिल, संपत्ते पंचमं गई ॥ १८ ॥ सेसिवे यले निच्चे, अरू रामरे ॥ कम्मप्पपंचनम्मुक्के, जएवीरे जए जिये ॥ १९ ॥. से जिये वद्धमाणेय महावीरे महायसे ॥ सखंडुक खिन्ना, अम्हाणं देत निव्वु ॥ २० ॥ इय परम पमोया संधु वीरनाहो, परमपसमदाणा देन तुलत्तणं मे ॥ समसुददेस सग्ग सिद्धी जत्रेसु, कायकयवरेषु सतु मित्ते सुवावि ॥ २१ ॥ ॥ इति श्रोवीरजिन स्तवन ॥
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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