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________________ (१२) ॥ अथ श्री वीरजिन स्तवन ॥ .. जश्जा समणे जयवं, महावीर जिणुत्तमे ॥ : खोगनाहे सयंबुझे, लोगंतिय विबोहिए ॥ १ ॥ वरं दिनदाणोहे, संपूरियजणासए ॥ नाणत्यसमाउत्ते, पुत्ते सिझबराइयो ॥॥ चिच्चा रङ च रहं च, पुरं अंतेउरं तहा ॥ निस्कमित्ता आगाराउँ, पवए अणगारियं ॥ ३ ॥ परीसहाणं नोनीए, नेरवाणं खमाखमे ॥ पंचहा समिए गुत्ते, बंजयारी अकिंचणे ॥ ४ ॥ निम्ममे निरहंकारे, अकोदे माणवहिए ॥ श्रमाए लोनविमुक्के, पसंत छिन्नबंधणे ॥ ५॥ . पुरकरवा अलेवेय संखोइव निरंजणे ॥ जीवेवा अप्पमिग्घाए गयणंव निरासए ॥ ६ ॥ वाउव्व अप्पमिबके, कुम्मोवा गुत्तदिए ॥ विप्पमुक्के विहंगव्य, ख गिसिंगंव एगगे ॥७॥ नारंमेवा पमत्तेय, वसदेवा जाय थामए ॥ कुंजरोश्व सोमीरे, सींहोवा पुरिस्सए ॥७॥ सायरोश्व गंन्नीरे, चंदे व सोमलेसए.॥ सूरोवा दित्त तेयो, हेमंवा जाय रूवए ॥ ए॥... सवं सहे धरित्तिव, सायरंखुव सबहे ॥ सुजुहुय हुयासुब, जलमाणेय तेयसा ॥ १० ॥ वासी चंदण कपणेय, समाणे लोहुं कंचणे ॥ समे पूया वमाणेसु, समे मोरके नवे तहा ॥ ११ ॥ नाणेशं दसणेणं च, चरित्रण मणुत्तरे ॥ .
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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