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________________ (१३) शब्दार्थः -- तीर्थंकर बता पण वांडा रहित अने ताब्यादि की रोने नदि उच्चारता एवाय पण जे प्रजुनी वाणीनी संपत्तियो ( अथवा वाली ने उत्र चामरादि संपत्तियो ) जयवं ती वर्ते बे.. ते मोक पामेला, ऋष्यादिद्वारा लोकोनो उद्धार कर नारा, उत्तम ज्ञानव ला, केवलज्ञानथी सर्व लोकना व्यापक एवा, अनेक प्रकारनां जब दुःखने श्रापनाशं कर्मने जीतनारा, तेमज आत्मरूपे रहेला ते प्रजुने नमस्कार था ॥ २ ॥ श्रुतेन सिंगेन यथात्मशक्ति समाहितांतःकरणेन सम्यक् ॥ समीक्ष्य कैवल्यसुखस्पृहाणां, विविक्तमात्मानमयानिधास्ये, शब्दार्थ:- हुं म्हारी शक्ति प्रमाणे शास्त्रथी, देतुथी ठाने नि श्चल एवा अंतःकरणथे। उत्तमरीते अनुज करीने पढी सर्व क मनारहित पणाने विषे ( मोक्षने विषे, सुखनी इछा करनारा ननुं कर्ममलरहित जोवस्वरूप कही ॥ ३ ॥ बहिरंतः परश्चेति, त्रिधात्मा सर्व देदिषु ॥ उपेयात्तत्र परमं, मध्योपायादव हिस्त्यजेत् ॥ ४ ॥ " शदार्थ सर्वे प्राणीयोभां बहिरात्मा, अंतरात्मा अने पर मात्मा एम त्रण प्रकारना आत्मा बे. तेमां मध्य अंतरात्माना उपाय परमात्माने पामवुं तथा बहिरात्माने त्यजी देवो ||४|| बहिरात्मा शरीरादो, जातात्मभ्रांतिरांतरः || चित्तदोषात्मविभ्रांतिः परमात्मातिनिर्मलः ॥ ५ ॥ शब्दार्थ:-- शरीर, वाणी मन इत्यादिकने विषे श्रात्मा एवी जेनी चांति थाय ते बहिरात्मा जाणवो. चित्त, दोष छाने श्रात्मा तेमने विषे जेनी प्रांति नाश पामे अर्थात् चित्तने चित्तपणाथी, दोषो ने दोषपणाथी भने आत्माने आत्मापणाथी जाणे ते अंतरा त्मा जाणवो ने जेना सर्व कर्ममल हय यर गया होय ते
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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