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________________ एसो जवीवियारो, संखेवरुईणजाणणादेखें ॥ संखित्तो नरिन, रुदान सुयसमुद्दान ॥५१॥ ' शब्दार्थः-पाजीवविचार थोमी बुद्धिवाला जीवोने जाणवा माटे विस्तारवंत एवा श्रुतसमुजयकी संदेपे नद्धरयो बे. ॥५१॥ ॥ति जीव विचार प्रकरण पेहेर्यु समाप्त. ॥ . श्री . । नवतत्त्व प्रकरण बीजं ॥ (आर्यावृत्तम् ) प्रथम गाथामां नवतत्त्वनां नाम गणावे . जीवाऽजीवा पुस्मं, पावासवसंवरो य निकरणा॥ बंधो मुको य तहा, नवतत्ता हुंति नायवा ॥१॥ शब्दार्थः-जीव, श्रजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर अने निर्जरा वली बंध तेमज मोक्ष ए नवतत्त्वोजाणवा योग्य ॥ हवे नवतत्वना दनी संख्या कहे . चउदस चनदस बाया-लीसा बास अ हुँति बायाला॥ सत्तावन्नं बारस, चन नव नेया कमेणेसिं ॥३॥ शब्दार्थः-पहेला तत्त्वना चौद, बोजाना चौद, रोजाना बेंतासीश, चोथाना व्यास अने पांचमाना बेतालीस, बहाना सत्तावन, सातमाना बार, पाठमाना चार अने नवमाना नव. एवा अनुक्रमे करीने नेदो थाय . ॥ २॥ हवे जीवोनी उ जाति कहे . .. एकविद विदतिविदा, चनविदा पंचविदा जीवा ।। चेयण तस इयरेदि, वेय गई करण काएहिं ॥३॥
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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