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( १७३ ) शब्दार्थः-- वली म्होटी प्रतिमान पांचसो धनुष्यनी छाने
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मणिपीठ नपर
न्हानी प्रतिमा सात हाथनी बे. ते प्रतिमा देवदामां सिंहासन उपर बेठेली बे. ॥ ६ ॥ जिण पिठे बत्तधरा, पमिमा जिनिमुद पुन्नि चमरधरा नागा नूच्या जका, कुंमधरा जिएमुहा दो दो ॥ ७ ॥
शब्दार्थः- जिनप्रतिमानी प्राबल एक बत्रधर प्रतिमा अने सन्मुख बे चामरधारक प्रतिमा ठे वली जिनेश्वरना सम्मुख नागदेवनी, जूतदेवनी, जहदेवनी ने कुंरुधारीनी वे वे प्रतिमा बे. (त्रधरादिकनी सर्व मली श्रगीयार प्रतिमा थाय बे.) उ सिविच नानि चुच्चु, पयकर केस महि जीद तालुरुणा अंकमया नह अच्छी, तो रत्ता तदा नासा ॥ ८ ॥
शब्दार्थः - श्री जिनेश्वरना श्रीवत्स, नाजी, चुंचुक, हाथेली, पगनां तलीयां, मस्तक, जीन ने तालबुं एटलां राता वर्णवा लांबे. नखांख करत्नमय बे तेमज बेने रातां वर्ण वाली नासिका बे ॥ ८ ॥ ताराइ रोमराइ, अच्छिदला नमुदि केस रिमया ॥ फलिद मय दसण वयरमय सीस विदममया हा
शब्दार्थः- यांखनी की की, संवामानी पंक्ति, श्रांखनी पांप , ने ने केश एटला श्यामरत्नमय बे, दांत स्फटिक रत्न मय बे, मस्तक वज्ररत्नमय वे खने होठ परवालां सरखा डे. ए कणगमय जाणु जंघा, तगुजही नास सवण भालोरू ॥ पलायक निसन्नाणं, इ परिमाणं जवे वन्नो ॥ १० ॥
शब्दार्थः-- ढींचण, जांघ, शरीरनी यष्टी, नासिका, कान, कपाल अने साथल ए सर्व सुवर्णमय बे, वली पद्मासने बेठेली