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________________ ( १६५ ) नाकज्जमायरिज्जइ, अप्पा पामिज्जए न वयपिज्जे || तेण जगहच्चो ॥ १३२ ॥ नय सादसं चइज्जइ, उनि शब्दार्थ:-- कार्य न खादरयुं, पोते निंदनी कमां न परुवुं ने साइसने न त्यजी देवं के, तेथी जगत्मां हाथ जो रहे. १२ वसणेवि न मुनिज्जइ, मुच्चइ माणो न नाम मरणेवि ॥ विश्वकए वि दिज्जइ, वयमसिधारं खु धीराणं ॥ १३ ॥ शब्दार्थ - दुखमां पण न मुंकावुं, मरण थाय तो पण मा ननुं नाम न मूक, लक्ष्मीनो नाश थाय तो पण दान श्रापवु. ए वीरपुरुषानुं असिधारा ( तरवारनी धार सरखुं) व्रत बे. १३ नेदो न वदिज्ज, रू सिज्जइ न य पिएवि पयदिहं ॥ वारिज्जइ न कली, जलंजली दिज्जइ दुहाणं ॥ १४ ॥ शब्दार्थ- कोइनी साथे बहु स्नेह न करवो, स्नेही उपर निरंतर न रीसायुं, क्लेश न वधारवो तेमज दुःखोने जलांजली पत्री, अर्थात् दुःखने त्यजी देवं ॥ १४ ॥ न कुसंगेण वसिज्जइ, बालस्सवि धिप्पर हियं वयणं नयान निवहिज्जइ, न होइ वयज्जिया एवं ॥ १५॥ शब्दार्थ - कुसंगीनी साथे न वसवुं, बालकनुं पण हित व चन ग्रहण कर, अन्यायथी पाठा फर के, जेथी श्राप को इ. माटुं न बोले. ॥ १५ ॥ . विहवेवि न मञ्चिज्जइ, न विसीइज्जइ वहिज्जइ समजावे, न होइ रणरण संपयाएवि ॥ संतावो ॥१६॥' शब्दार्थ - धनवंतपणामां अभिमान न करवुं तेमज निर्ध नपणामां खेद न करवो, शत्रु मित्रने विषे समजावू राखवो के जेथी सारे खोटे संताप न होय ॥ १६ ॥ .
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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