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________________ (१५५) मुलं विणविदा, गिलाण पमिअरणजोग सिद्धो अ रयणकंबल--चंदण विणिनवि तंमिन्नवे ॥॥ शब्दार्थ-ग्लान मुनिने वापरवा योग्य वस्तु रत्न कंबल अनेबावना चंदन विना मूख्ये श्रापीने श्रावक पण तेजनवमां सिजिपद पाम्यो दाऊण खीरदाणं, तवेण सुसिअंगसाहुणो धणिअं॥ जणजणियमकारो, सजाउं सालिनदोवि ॥५॥ ... शब्दार्थः-तपथी सूकवी नाख्युं के शरीर जेमणे एवा सा धुने धन्यकारी खीरनुं दान आपी शालिनशेठ पण माणसोने आश्चर्य उत्पन्न करनारो थयो. ॥ ए॥ जम्मंतरदाणा, जलसिया पुवकुसलधाणा॥ कववन्नो कयपुन्नो, नोगाणं नायणं जा ॥१०॥ शब्दार्थः-पूर्व जन्मने विषे करेला सुपात्रदानना प्रजावने सीधे नवास पामेला श्रपूर्व शुज ध्यानथी कृतपुण्य एवो कयव नो शेठ लोगोनुं पात्र ययो. ॥१०॥ घयपूसवन्त्रपूसा, महरिसिणो दोसलेसपरिहीणा ॥ लक्षीई सयलगच्छो--वग्गहगा सग्गइं पत्ता ॥ ११॥ .. शब्दार्थः-घृतपुष्प तथा वस्त्रपुष्प ए बे साधु दोषना लेशरहित बता पोताना तपनी लब्धियो सर्व गबनी घृत तथा वस्थी नक्ति करी नत्तम गति पाम्या. ॥ ११ ॥ जीवंतसामिपमिमा-इंसासणं वियरिऊण नत्तिन॥ पवईकण सिशे, उदाणो चरमरायरिसी ॥१२॥ शब्दार्थः-श्री जीवतस्वामीनी प्रतिमाने श्री वीरप्रजुना शासनमा जतिथी विचरीने पळी चारित्र लश् नदायन नाम
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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