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________________ ( १४६ ) कनो बंध पण होय . एम जालीने श्री जिनेश्वरे कहेला ध मने विषे उद्यम करो. ॥ १६ ॥ ॥ इति पुण्य पाप कुलकम् ॥ 000 ॥ अथ गौतमकुलकम् ॥ बुधा नरा चपरा हवंति मूढा नरा कामपरा हवंति || बुरा खंतिपरा हवंति, मिस्सा नरा तिन्निविप्रायरंति शब्दार्थः--लोजीया पुरुषो धन मेलववाने तत्पर होय बे, मूर्ख पुरुषो कामने विषे तत्पर होय बे, पंकित पुरुषो कमामां तत्पर दो बे ने मिश्र पुरुषो पूर्वेकहेला त्रणने पण श्राचरे बे. ते पंकिया जे विरया विरोदे, ते साहुणो जे समयं चरंति॥ ते सत्तिणो जे न चयंति धम्मं, ते बंधवा जे वसणे दवंति २ शब्दार्थः -- जे विरोधथी निवर्त्या ते पंक्ति, जे श्रगम प्र माणे चाले ते साधु, जे धर्मने न त्यजे ते शक्तिवंत ने जे दुःखमां सहाय करे ते बांधवो जालवा. ॥ २॥ कोदानिनूया न सुखं लदंति, माणंसीणो सोयपरा दवंति मायाविणो हुंति परस्स पेसा, बुधा मदित्वा नरयंजविंति शब्दार्थः-- क्रोधथी परानव पामेला माणसा सुख न पामे, - अजिमानी माणसो शोकवंत थाय, मायावी माणसो बीजाना चाकर याय ने लोजी तथा म्होटी श्बा करनारा नरक पामे ||३|| कोदो विसंकिं मयं हिंसा, माणो अरी किंदियमप्यमान माया जयं किंसरणं तुसच्चं, लोहो हो किं सुदमाद तुट्ठी शब्दार्थः प्र० विष शुं ? न क्रोध; प्र० अमृत शुं ? न० अहिंसा; प्र० शत्रु कोण ? न० मान; प्र० हित शुं ? उ० श्रप्रमाद; .
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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