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(१४३) शब्दार्थः-जो कोइ जीव पोषद सहित तप नियमना गुणो थी एक दिवस गमावे तो ते श्रागल कदेशे तेटला पल्योपमनुं देवतानुं श्रायुष्य बांधे . ॥२॥ सगवीसं कोमीसया, सतहत्तरी कोमीलक सहस्सा य॥ सत्तसया सतहुतरि, नवनागा सतपलियस्स ॥३॥
शब्दार्थः--सत्तावीस सो क्रोम, सीत्योतेर क्रोम, सीत्योतेर लाख सीत्योतेर हजार, सातसोने सीत्योतेर एटला पक्ष्योपम अने वली एक पढ्योपमनो नवमो नाग. ॥३॥ अहासीई सहस्सा, वाससये दुन्नि लरक पदराणं ॥ एगावि अ जइ पहरो, धम्मजुन ता श्मो लाहो ॥४॥
शब्दार्थः-एकसो वर्षना बे लाख अने हासी हजार पहोर दे. तेमांथी जो कोइ जीव एक पण पहोर धर्म युक्त (पोसह व्रत युक्त.) थाय तो तेने पागल कहेशे एटलो लान थाय।। तिसयसगंचत्तकोनि, लरका बावीस सहस बावीसा ॥ दुसय दुवीस दुनागा, सुराउबंधो य गपहरे॥५॥
शब्दार्थः त्रसो समताली क्रोम, बावीस लाख, बावीत हजार, बसो अने बावीस, पल्योपम अने वली उपर एक प. व्यापमना बे नाग. वर्षमा एक पहोर पोषह करनारने देवतानां थायुष्यनो एटलो बंध थायडे ॥ ५॥ दस लरक असीय सहसा, महुत्त संखाय हो वाससए॥ जश सामाश्असहिजे, एगोविअत्ता इमो लाहो ॥६॥
. शब्दार्थः-सो वर्षनांमुहूर्त (बेघमीयो) दस लाख अने ऐसी हजार थाय थायजे. जे जीव ए एक मुहूर्त सामायिक लदे तो तेने श्रागली गाथामां कदेशे तेटलो लान थाय ॥ ६ ॥