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________________ ( १२६ ) समान, संपत्तियो जलना तरंगो समान घने प्रेम स्वप्न समान बे, माटे जो तुं ते जाणतो होय तो धर्म श्राचरः ॥ ४४ ॥ ( रथोद्धतावृत्तम् ) संकराग जल बुब्बुवमे, जीविए प्र जलबिंदुचंचले ॥ जुवणे य नश्वेगसन्निने, पावजीव कि मियं न बुन से ४५ शब्दार्थः-- संध्या समयनो रंग, पाणीना परपोटा ने दर्ज ना नाग नपर रहे लुं पाणी नुं बिंडु तेना समान जोवित बते वल नदीना वेग समान युवावस्था बते हे पाप जीव ! तुं बोघ नथ पामतो ए शुं ? ॥ ४६ ॥ ( श्रार्यावृत्तम् ) अन्नच सुख अन्न व रोहिणी परिशोवि अन्नन्तु ॥ प्रबलिव, कुरूंचं, परिकत्तं दयकयते ॥ ४६ ॥ शब्दार्थ:--ारे निंदा करवा योग्य काले जतने वलिदान - पत्रानी पेठे पुत्रोने जूदो गतिमां, स्त्रीने जूदो गतिमां छाने परिवारने जूदी गतिमां; एम सर्व कुटुंबाने जूडुं जूडुं करी नाख्युं बे. जीवेण नवेनवे मि लिया, देदाइ जाइ संसारे ॥ ताणं न सागरेहिं, कीरइ संखा प्रणतेदिं ॥ ४७ ॥ शब्दार्थः -- हे श्रात्मन्! या संसारमां जी वे, नवे नवमां जे देदो मे बाबे, तेनुनी अनंता सागरोपमथी पण संख्या थइश के तेम नयी. नयोदयं पितासिं, सागरसलिलान बहुयरं दोइ ॥ गलियं रुयमाणी माऊणं अन्नमन्नाणं ॥ ४८ ॥ शब्दार्थः - हे श्रात्मन्! ते अपर अपर जन्मनी रुदन करती मातार्जुनां यांसुनां जलनुं प्रमाण समुद्रनां जलथी पण वधारे बे. जं नरए नेरइया, दुहाइ पार्वति घोरणंताई ॥
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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