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११५ नियया इंदिया, वल्लिनिअत्ता तुरंगुव ॥ ए४॥ __ शब्दार्थः-हे जीव! अत्यंत धिरजरूप दोरमाथी वश्य राखेलो पोतानी इंडियो, लगाममां वश्य राखेला घोमानी पेठे अतिशे फायदाकारक , ॥ ए॥ मणवयणकायजोगा, सुनिअत्ता तेवि गुणकरा हुँति ॥ अनिअत्ता पुणनंजति, मतकरिणुव्व सीलवणं ॥ एय॥
शब्दार्थ---मन वचन श्रने कायाना योग वश्य करया बतां ते पण गुणकारी थाय बेथने नदि वश्य करया उतां मदोन्मत्त हस्तिनी पेठे शी वरूप वनने नागे . ॥ ए॥ जद जद दोसा विरमइ, जद जद विसएदि होश् वेरग्गं॥ तह तह विनायवं, आसन्नं से य परमपयं ॥ ए६ ॥
शब्दार्थः-जेम जेम दोषो विराम पामे श्रने जेम जेम वि. षयथी वैराग्य थाय डे, तेम तेम जाणवू के, तेने परमपद मोक्ष दुक हुंथाय , ॥ ए६ ॥ उक्कर मेएदि कयं, जेहिं समबेदि जुवणबेदि । जग्गं इंदिय सिन्नं, धिपायारं विलग्गेदिं॥ ए॥
शब्दार्थ:-जे पुरुष पोताना सामर्थ्यपणाथी जोवन श्रवस्था मां इंजियरूप सैन्यने नागीने धिरजरूप प्राकार (गढ)ने वलग्या, ते पुरुषे पुष्कर काम कघु एम जाणवू. ॥ ए ॥ ते धन्ना ताण नमो, दासोऽहं ताण संजमधराणं॥ अखि पचिराउ, जाण न दियए खमति ॥ एG॥ ___शब्दार्थः-तेज पुरुषोने धन्यडे, तेमनेज अमे नमस्कार करी एबीए अने तेज संयमधारीना श्रमेदास बीए के,जे पुरुषोंना हृदयमां अर्फि अांखे जोनारी अर्थात् कटाक्ष नेत्रे जोनारी स्त्रो खटकतो नथी.॥ए॥