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________________ .. (१७) स्थिर , देह क्षणनंगुर ले तेमज कामनोग सुब अले खाखो-गो उःखनां कारण . ॥५॥ नागो जहा पंकजलावसन्नो, दंथलं नानिसमे तीरं । एवं जिया कामगुणेसु गिझा, सुधम्ममग्गे न रया दवंति शब्दार्थः-जेम हाथी कादववाला जलमां बूमयो तो जो के स्थलने देखे बे. तथापि त्यांथो कांठे श्रावी शकतो नथी. तेम-कामगुणमा गृक थयेला जोयो, पण सुधर्मनां मार्गमा रक्त थता नथी. ॥ एए॥ जह विपुंजखुत्तो, कीमि सुहं मन्नए सयाकाखं ॥ तह बिसयासुश्रत्तो, जीवोवि मुण सुहं मूढो ॥६॥ शब्दार्थ-जेम विष्टाना ढगलामां खूचेलो करमोयो (जो के तेमा सदाकाल दुःख , तथापि) तेमां सदाकाल सुख माने, तेम विषय रूप अशुचोमां रक्त ययेलो मूढ जोव पण (विषयमा) सुख माने . ॥ ६॥ मयरहरोव जलेहि, तहवि हु दुप्पुर श्मे आया। विसयामिसं मि गिो, नवे नवे वचन तत्तिं ॥६॥ शब्दार्थः-जेम पाणीये करी समुफ पूरावो पुष्कर , तेम विषयरूर श्रामिष (मांस) मां गृह थयेलो था प्रात्मा पण विष यथो पूरावो पुष्कर ने अने तेने लोधेज ते जव जपमा तृप्ति पामतो नथी. ॥ ६॥ विसय विसहा जीवा, उनमरूबाइरसु विविहेसु॥ नवसयसहस्सउलई, न मुणंति गयंपि निअजम्मदशा शब्दार्थः-विषयरूप विषथी पीमायेला जो उनटरूप आदि देश विविध प्रकारनां रूपश्री पोतानों नगमावे , परंतु
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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