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________________ . शब्दार्थः-जोगी पुरुषो जोगमा लपटाय बे अने अजोगी. पुरुषो लपटाता नथी; एटलाज माटे लोगो संसारमा नमे जे अने बनोगी संसारथी मूकाय . ॥ १८ ॥ अल्लो सुको य दो छूढा, गोलया महियामया ॥ दोवि व मिश्रा कूमे, जो अल्लो तब लग्गरमा एवं लग्गति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा ॥ विरत्तान न लग्गंति, जहा सुक्के य गोलए ॥२०॥ शब्दार्थः-लीलो अने सूको एवा बे माटीना गोला नीत तरफ फेंक्या, ते बे गोलानींते अफलाया, परंतु तेमांथी जेली लो गोलो हतो, तेन्जीते चोटी रह्यो अने सूको गोलो न चोटी रह्यो ए प्रकारे कामनोगमां लंपटी अने पुर्बुझि पुरुषो संसार रूप जीतमा चोटी र अने जे कामनोगथी विराम पाम्याने, ते सूका गोलानी पेठे (संसाररूप जीतमा) चोटी रहेता नथी. . (श्रावृत्तम्.) तणकठेहिव अग्गी, लवणसमुद्दो नईसहस्सेहिं ॥ न इमो जीवो सक्को, तिप्पे कामलोगेहिं ॥२॥ शब्दार्थः-जेम घास तथा काष्टथी अग्नि, श्रने हजारो नदीयोथी लवणसमुष तृप्त थतो नथी, तेम आ जीव पण काम. जोगथी तृप्त थवाने शक्तिवान थतो नथी. ॥१॥ जुत्तूण वि नोगसुई, सुरनरखयरेसु पुण पमाएणं ॥ पिजा नरएसुनेरव, कलकलतन तंबपाणाइं ॥श्शा शब्दार्थः-था जोव, देव मनुष्य अने विद्याधरनी गतिमा प्रमादना वशथीनोगसुख जोगवीने नरकमां नयंकर कलकखता अग्निये तपावेला त्रांबाना रसने पीये . ॥२॥
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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