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________________ ((US) ( काव्यम्. ) जदा य किंपागफला मणोरमा रसेण वन्नेण य जुंजमाणा ते खुट्टए जीवि पञ्च्चमाणा, एनवमा कामगुणा विवागे १४ शब्दार्थः — जेम किंपाक फलो, रसथी, वर्णथी ने खावाश्री मनोहर लागे बे; परंतु पचता एवा ते फलो जीवितने खुटामे म काम गुणो परिणामे तेवाज जाणवा ॥ १४ ॥ (अनुष्टुप् वृत्तम् ) सवं वीलविप्रं गीयं, सवं नहं विमंबणा ॥ सबे मरणा नारा, सधे कामा दुदावहा ॥१८५॥ शब्दार्थ:-- सर्व प्रकारनां गीत विलाप तुल्य बे, सर्व प्रका रनां नाटक विटंबना तुल्य बे, सर्व प्रकारनां श्राजरणो-घराणां जर तुल्य बे, तेमज सर्व प्रकारना कामनोगो दुःखदायक बे. ( श्रार्यावृत्तम् ) देविंद चक्कवहि-- तपाइ राइ उत्तमा जोगा ॥ पत्ता प्रांतखुत्तो, न य दं तत्तिं गर्नु तेहिं ॥१६॥ शब्दार्थः-- अहो ! देवेंद्र ने चक्रवर्तिनां राज्यो तथा उत्तम जोगोने हुं वनंतीवार पाम्यो, तोपण तेथी तृप्ति पाम्यो नदि. संसारचक्कवाले, सधेवि य पुग्गला मए बहुसो || आदारिया य परिणा - मिया य नय तेसु तित्तोऽहं १७ शब्दार्थः - संसाररूप चक्रवालमां सर्व प्रकारना पुलोने मेंघपीवार खाधा ने परिलमाव्या; तथापि तेथी हुं तृप्ति पाम्यो नहि. (अनुष्टुप्वृत्तम् ) लेवो दो जोगे, जोगी नोवलिप्पई ॥ जोगी जमइ संसारे, अजोगी विप्पमुच्चई ॥ १८ ॥ .
SR No.023442
Book TitlePrakaranmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Vadhvanwala
PublisherBhogilal Tarachand Shah
Publication Year1909
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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