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प्रकाशकीय
पं. नाथूराम प्रेमी रिसर्च सिरीज़ के तहत हम अब तक आचार्य समन्तभद्र कृत रत्नकरण्ड श्रावकाचार, आचार्य पूज्यपाद कृत समाधितन्त्र एवं इष्टोपदेश, आचार्य कुन्दकुन्द कृत अट्ठपाहुड एवं बारस अणुवेक्खा, आचार्य जोइन्दु कृत परमात्मप्रकाश तथा योगसार, आचार्य प्रभाचन्द्र कृत तत्त्वार्थसूत्र और आचार्य नेमिचन्द्र कृत द्रव्यसंग्रह को हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित कर चुके हैं। हिन्दी ग्रन्थ कार्यालय के लिए इन ग्रन्थों के अनुवाद हमारे विशेष अनुरोध पर ख्यात साहित्यकार डॉ. जयकुमार जलज ने किया है, मध्य प्रदेश शासन द्वारा प्रकाशित जिनकी पुस्तक ‘भगवान महावीर का बुनियादी चिन्तन' अपने प्रकाशन के छह साल के भीतर ही अठारह संस्करणों और अनेक भाषाओं में अपने अनुवादों तथा उनके भी संस्करणों के साथ पाठकों का कण्ठहार बनी हुई है। यह महज़ संयोग ही नहीं है, कि आचार्य प्रभाचन्द्र ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका लिखने के बाद समाधितन्त्र की भी टीका लिखी। आचार्य प्रभाचन्द्र के हज़ार साल बाद डॉ. जयकुमार जलज ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार का हिन्दी अनुवाद करने के बाद समाधितन्त्र का भी अनुवाद किया। दरअसल यह जीवन को उसकी समग्रता में समझने की स्वाभाविक इच्छा का परिणाम है। समाधितन्त्र का डॉ. जयकुमार जलज कृत यह अनुवाद आचार्य समन्तभद्र के रत्नकरण्ड श्रावकाचार के उनके अनुवाद की तरह ही मूल रचना का अनुगामी है। इसमें कहीं भी अपने पाण्डित्य का हौआ खड़ा करने का तत्त्व नहीं है। शब्दप्रयोग के स्तर पर ही नहीं, वाक्य संरचना के स्तर पर भी यह बेहद सहज और ग्राह्य है। गैर ज़रूरी से परहेज़ इसका ध्येय वाक्य है। इसलिए अनुवाद में एक ऐसी भाषा का इस्तेमाल है जैसी संस्कृत अथवा मध्ययुगीन भारतीय आर्य भाषाओं के हिन्दी अनुवादों में साधारणत: प्रयुक्त नहीं मिलती। यह अनुवाद आतंकित किये बिना सिर्फ वहीं तक साथ चलता है जहाँ तक ज़रूरी है और फिर आत्मसाधना के इस स्थितप्रज्ञ ग्रन्थ (समाधितन्त्र) का सहज सान्निध्य पाठक को सौंपता हुआ नेपथ्य में चला जाता है। कुछ ही महीनों में हमें समाधितन्त्र का यह तीसरा संस्करण प्रकाशित करना पड़ा। यह इस बात का संकेत है कि पाठक इस ग्रन्थ को पढ़ना तो चाहते थे, उन्हें बस एक अच्छे और मर्यादा में रहनेवाले अनुवाद की तलाश थी।
यशोधर मोदी