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________________ इतश्चिन्तामणिर्दिव्य इतः पिण्याकखण्डकम् । ध्यानेन चेदुभे लभ्ये क्वाद्रियन्तां विवेकिनः ।।२०।। संसार में अलौकिक चिन्तामणि है और खली के टुकड़े भी हैं। अगर दोनों को ही प्राप्त करने का साधन ध्यान हो तो बुद्धिमान व्यक्ति किसे प्राप्त करना चाहेगा ? स्वसंवेदनसुव्यक्तस्तनुमात्रो निरत्ययः । अत्यन्तसौख्यवानात्मा, लोकालोकविलोकनः ।।२१।। आत्मा आत्मानुभव द्वारा गम्य है। शरीरप्रमाण है। अविनाशी है। अनन्त सुख से सम्पन्न है और लोकालोक को देखने में समर्थ है। संयम्य करणग्राममेकाग्रत्वेन चेतसः । आत्मानमात्मवान् ध्यायेदात्मनैवात्मनि स्थितम्।।२२।। मनुष्य को चाहिए कि वह इन्द्रियों को बाह्य विषयों से हटाकर मन को एकाग्र करे और अपनी आत्मा में स्थित होकर आत्मा के द्वारा ही आत्मा का ध्यान करे। अज्ञानोपास्तिरज्ञानं, ज्ञानं ज्ञानिसमाश्रयः । ददाति यत्तु यस्यास्ति, सुप्रसिद्धमिदं वचः ।।२३।। अज्ञानी की उपासना (आश्रय) से अज्ञान और ज्ञानी की उपासना से ज्ञान मिलता है। यह कथन प्रसिद्ध ही है कि जिसके पास जो होगा वही तो वह देगा। १२
SR No.023439
Book TitleIshtopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaykumar Jalaj, Manish Modi
PublisherHindi Granth Karyalay
Publication Year
Total Pages26
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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