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________________ ६० - तत्त्वोपनिषद्अतोऽन्यथा गुणावबोधभिन्नहेतुकगौरवादरे तु कुलाङ्गनावृत्तं भवेत्, कुलस्त्रीचरितानुसरणं स्यात्। अयमत्राशयः-यथा हि सा कुलाङ्गना निर्गुणं ज्ञात्वाऽपि स्वपतिं यावज्जीवमपि नैव मुञ्चति, परमेश्वरबुद्ध्या यादृशं तादृशं वाऽपि तमेवाराधयति, परपुरुषं स्मरत्यपि न, आस्तां दृशा सम्भावनम्। तद्गुणश्रवणेऽप्यपराधं मन्यते। यथा निर्गुणोऽपि तत्पतिस्तदभिप्रायेण जगज्ज्येष्ठस्तथैव गुणावबोधभिन्नहेतुकगौरववतोऽभिप्रायेणापि स्वाभिमताऽऽप्त इति स्फुटमेव कुलाङ्गनावृत्तम्। आपकी सब बात ठीक है, मगर जिसे जो पारंपरिक आप्त मिला उसीमें उसको आदर हो वही गौरव का हेतु हो, तो इसमें क्या नुकसान है ? इसका उत्तर देते है, यदि गुणावबोध ही गौरव का हेतु न हो, तो वो तो कुलाङ्गना का वृत्त बन जाये, अच्छे घर की स्त्री के आचरण का अनुकरण बन जाये। ऐसी स्त्री का एक नैतिक धर्म होता है, कि जैसा भी पति हो उसे जीवनभर निभाना, पति कितना भी गुणरहित क्यूँ न हो, उसे परमेश्वर समज़कर उसकी सेवा करनी। उसके गुण गाना, उन्ही में अत्यन्त आदरभाव रखना। परपुरुष को तो याद भी न करना, उसका खयाल भी मन में न आने देना, उसे देखने की तो बात ही कहाँ रही ? परपुरुष के गुणों का श्रवण करना इसे भी वो अपराध समज़ती है। जिस तरह निर्गुण पति भी कुलाङ्गना के लिये विश्वश्रेष्ठ है, उसी तरह जिसे गुणावबोध से गौरव नही हुआ मगर पक्षपात से ही गौरव हुआ है, वो भी अपने आप्त के गुणों की परवा किये बिना ही उसे विश्वश्रेष्ठ मानता है। इस प्रकार यहाँ भी कुलांगनावृत्त ही हुआ। कोइ प्रश्न करे कि ऐसा वृत्त भी अच्छा ही है ना ? इसमें कौनसा दोष है ? जवाब है आपकी बात सच है। इसमें कोई दोष
SR No.023438
Book TitleTattvopnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherJinshasan Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages88
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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