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________________ मान, ५१ ( आरण ) के० आरण विमान, (तहाविय ) के० तेमज ५२ ( अच्चुए ) के० अच्युत विमान. ए चार विमान अगीयारमे तथा बाग्मे देवलोके ( चेव ) के० निश्चे जाणवा ॥ १४४ ॥ सुदंसण सुपडिबद्धे, मणोरमे चेव होइ पढमतिगे ॥ तत्तो य सबभद्दे, विसालए सुप्रणे चेव ॥ १४५ ॥ ___ अर्थ-५३ ( सुदंसणे ) के० सुदर्शन विमान, ५४ ( सुपडिवद्धे ) के० सुप्रतिबद्ध विमान, ५५ (मणोरमे ) के० मनोरम विमान, ए त्रण विमान नव ग्रैवेयकना ( पढमनिगे) के० प्रथम त्रिकने विषे ( चेव ) के० निश्चे ( होइ) के० छे. (तत्तो य ) के० अने त्यार पछी ५६ ( सधभदे ) के० सर्वभद्र, ५७ (विसालए) के० विशाल, ५८ (सुमणे ) के० सुमनस-ए त्रण विमान नव अदेयकना बीजा त्रिकने विषे ( चेव ) के निश्चे छे. ॥ १४५ ॥ सोमणसे पीइकरे, आइवे चेत्र होइ तइयतिगे ॥ सघट्टसिद्धिनामे, दया एव बासट्ठी ॥ १४६ ॥ 1% ___ अर्थ-५९ ( सोमणसे ) के० सोमनस विमान, ६० ( पीइकरे ) क० प्रीतिकर विमान, ६१ ( आइच्चे ) के० आदित्य विमान. ए त्रग विमान नव प्रवेयकना बोजा त्रीकने विषे ( चव ) के० निश्चे ( होइ ) के० छे. अने पांच अनुत्ता विमानने विषे ६२ (मवसिद्धिनामे ) के एक सर्वार्थ सिद्धि नामनुं विमान छे. (इंदया एव बासही)के० ए बासठ इंद्रक विमानना नाम कह्या. १४६ हवे दरेक देवलोके श्रेणीना विमाननी संख्या लाववा माटे उपाय कहे छे.
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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