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________________ ५८ दाराणी ) के० एक द्वारथी बीजा द्वार सुधीनु ( अंतर) के० अंतर ( विनेया ) के० जाणवुं ॥ लवण समुद्रनो परिधि ( १५८११३९ ) योजनमां कांइक ओछो छे. अने लवण समुद्रनी चार दिशामां चार दरवाजा छे. ते दरेक दरवाजो चार चार योजन पहोलो छे. तेथी चार दरवाजाना सोल योजन थाय. अने दरेक दरवाजानी बन्ने वाजुए एक एक गाउना विस्तारवाली द्वारशाख प्रदेशनी भींत छे. तेथी चार दरवाजाना आठ द्वारशाख प्रदेशना बे योजन मेलवतां अहार योजन थाय, ते अढार योजन काढी नाखीने बाकीनी लवण समुहनी परिधिना चार भाग करतां ( ३९५२८० ) योजन अने एक गाउ एटलं द्वार द्वारनुं अंतर थाय ॥ ८६ ॥ वे मोटा पाताल कलशानुं स्वरूप अने तेनी संख्या कहे छे:जोयण सहस्स दसगं, मूले उवरि य होंति विच्छीण्णा || मझे य सय सहस्सं, तीत्तियमित्तं च उगाढा ॥ ८७ ॥ अर्थः - लवण समुद्रनी चारे दिशामां पूर्व दिशाथी आरंभीने १ वडवाव, २ केयूप, ३ यूप, अने ४ ईश्वर ए नामना अने एक हजार योजननी जाडी ठीकरीवाला चार मोटा पातालकलशा छे. ते कलशा (मूले ) के० नीचे मूलमां (य) के० अने ( उवरि ) के० उपर मुख आगल ( जोयण सहस्स दसगं ) के० दश हजार योजन ( बिच्छीणा ) के० विस्तारवाला होंति के० छे. (य) के० अने (मज्झ ) के० मध्यभागने विवे ( सय सहस्सं ) के० एक लाख योजन विस्तारवाला छे. (च) के० वली तित्तियमित्तं के० तेटलाज एटले एक लाख योजन ( उगाढा ) के० पृथ्वीमां उंडा छे. ॥ ८७ ॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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