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________________ अर्थः- (तत्तो ) के० त्यार पछी ( समए समए) के० एक एक समये (इकिके ) के० एक एक रोमखंड काढतां (जो कालो) के० जेटले काले ( अवहियमि ) के० ते पल्स खाली थाय. तेमां (संखिजवासकोडी ) के० संख्याता वर्षकोटि थाय. ते ( सुहुमे उद्धारसलियंमि) के० सूक्ष्म उद्धार पल्योयम कहेवाय. ॥ ८०॥ जावइया उद्धार, अढाइज्जाण सागराण भवे तावइया खलू लोए, एवं दिवा समुदाय ॥१॥ ____ अर्थः-( अड्डाइजाण ) के० अढी ( उद्धार सागराण) के० उद्धार सागरोपमना ( जावइया ) के० जेटला समय ( भवे ) के० थाय. ( तावइया ) के० तेटला ( लोए ) के० लोकने विषे ( एवं ) के० ए प्रमाणे (दीवा ) के द्वीप ( य ) के० अने ( समुद्दा ) के० समुद्र (खलु ) के० निश्चे जाणवा. ॥ ८१ ॥ उद्धारसागर दुगे सढे समएहिं तुलदीवुदहि दुगुणादुगण पवित्थर, वलयागारा पढमवज्जं ॥२॥८ ____ अर्थः- ( उद्धारसागर ) के० उद्धार सागरोपम ते (दुगे सहे ) के० अढी एटले अढी उद्धारसागरोपमना जेटला (समरहिं) के० समय थाय तेहने (तुल्ल ) के० बराबर अर्थात् तेटला (दीवुदहि ) के० डीप अने समुद्र छे. तेमां (पढमवज्ज) के० पहेला जंबुद्धीपने वर्जीने बाकीना सर्वे ( दुगुणादुगुपयवित्थर ) के० एक बीजाथी बमणा विस्तारवाला अने ( वलयागारा) के० वलय एटले चूडीना आकारे छे. अने प्रथमना जंबूद्वीप वृत्ताकारे छे. ॥ ८२॥ __अहीं प्रस्तावे छ प्रकारना पल्योपम अने ६ प्रकारना सागरोपमर्नु स्वरुप जणावे छे ते आ प्रमाणेः
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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