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________________ माणुसनगाओ बाहिं, चंदा सूरस्ते सुदाम वार्ड जोयण सहस्स पन्नास, गूणगा अंतरं दिठ्ठे ॥ ७॥ अर्थः- ( माणुस नगाओ ) के० मनुष्यक्षेत्रनी मर्यादा रूप मानुषोत्तर पर्वतथी (बाहिं ) के० बहार ( चंदा ) के० चन्द्रथी ( सूरस्स) के० सूर्यनुं अने ( सूर ) के० सूर्यथी ( चंदस्स ) के० चन्द्रनुं ( जोयण सहस्स पन्नास ) के० पचाश हजार योजननुं ( अणूणगा) के० परिपूर्ण ( अंतरं ) के० अंतर ( दिउँ ) के० तीर्थकरोए कहुं छे. ॥ ७३ ॥ उपरनी गाथामां सूर्यथी चन्द्रनुं अने चन्द्रथी सूर्यनुं अंतर कं हवे सूर्यथी सूर्यनुं अने चन्द्रथी चन्द्रनुं अंतर कहे छे:ससि ससि रवि रवि साहिय, जोयण लक्खेण अंतरं होई || रवि अंतरिया ससिणो, ससि अंतरिया खी दित्ता ॥७४॥११ अर्थः- ( ससि ससि ) के० एक चन्द्रथी बीजा चन्द्रनुं अने P ( रवि रवि ) के एक सूर्यथी बीजा सूर्यनुं ( साहिय जोयण लरकेण ) के० एक लाख योजन अधिक अंतरं ( होइ ) के ० अंतर होय छे. कारण के ( रवि अंतरिया ससिणो ) के० सूर्य सूर्यने आंतरे चन्द्र छे. अने ( ससि अंतरिया रवी ) के० चंद्र चंद्रने आंतरे सूर्य ( दित्ता ) के० प्रकाशे छे. अर्थात् एक चन्द्रथी बीजा चन्द्रनुं अंतर एक लाख योजन उपर सूर्यना मंडल जेटलं एटले एक योजना एकसठीया अडतालीश भाग जेटलुं छे अने एक सूर्यथी बीजा सूर्यनुं अंतर एक लाख योजन तथा एक योजना एकसठीया छप्पन्न भाग जेटलं के. ॥ ७४ ॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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