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________________ तेथी क्षेत्रन अल्पत्व होवा छतां उत्सेवांगुलना मानथी तारानां विमाननुं प्रमाण करी शकाय छे. ॥ ६७ ॥ ___ हवे राहुनु स्वरुप अने तेनी गति कहे छे:आयाम विरभं, जोयणमेगं तु तिगुणओ परिही ॥ अढाइज्ज धणुसया, राहुविमाणाण बाहलं ॥ ६८॥॥ ___ अर्थः-(राहु विमाणाण ) के० राहुना विमाननी (आयाम विरकंभं) के० लंबाइ तथा पहोलाइ (जोयणग) के० एक योजननी होय छे. तु के० वली (परिही) के० परिधि ते (तिगुणओ) के० त्रण गुणो एटले त्रण योजनथी अधिक छे. अने (बाहल्लं ) के० जाडाइ ते ( अड्डाइज्जधणुसया ) के० अढीसो धनुष्यनी छे. ॥ ६८॥ कण्हं राहु विमाणं, निचं चन्देण होइ अविरहियं ॥ चतुरंगुलमप्पत्तं, हिछा चन्दस्स तं चरइ ॥ ६९ ॥ ११९ __ अर्थः- (कण्हं ) के० काला वर्णवाल (राहुविमाणं) के० राहुनुं विमान (निच्च ) के० निरंतर (चन्देण) के० चन्द्रना विमानथी ( अविरहियं होइ ) के० अभिन्न होय छे. अर्थात् दूर थातुं नथी. (तं ) के० ते राहुनु विमान (चंदस्स ) के० चन्द्रना विमानथी (चतुरंगुलमप्पत्तं ) के० चार अंगुल दूर (हिष्ठा ) के० नीचे ( चरइ) के० चाले छे. ॥ ६९ ॥ __ राहु वे प्रकारना छे. एक नित्यराहु बीजो पर्वराहु. पर्वराहु जधन्यथी छ मासे चन्द्रने अने सूर्यने ग्रहण करे छ अर्थात् पोताना विमानथी ढांके छे. तथा उत्कृष्टथी चन्द्रने बेंतालीश मासे अने सूर्यने अडतालीश वर्षे ग्रहण करे छे. नित्यराहुनुं विमान काला
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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