SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७ - हवे दरेक इन्द्रनी पासे केटली जातना देवो होय छे ? ते कहे छे:इंदसामाणियाण ता-यतीसा परिसा य अंगरक्खा य॥ लोगपाला अणिका, पइन्न अभिओग किब्बि सीया ॥ ४९|| 4 ___अर्थ:-( इंद ) के० इन्द्र, ( सामाणियाग ) के० सामानिक देवो, ( तायतीसा ) के० त्रायत्रिंशक देवो, (पहिसा) के० पर्षदाना देवो, ( अंगररका ) के० अंगरक्षक देवो, (लोगपाला) के० लोकाल देवो, ( अणिका) के० अनिक ते कटकना देवो, ( पइन्न ) के० प्रकीर्ण एटले प्रजारूप देवो, ( अभिओग) के० आभियोगिक ते चाकर देवो, ( किब्बिसीया ) के० किल्बिषिक देवो. ए दश जातिना देवो होय छे. ॥ ४९ ॥ ____ हवे कटकना सात प्रकार कहे छे:गंधव नट्ट हय गय, रह भड अणियाणि सव्वइंदाणं ॥ वेमाणियाण वसहा, महिसा य अहोनिवासाणं ॥ ५० ॥ ____ अर्थः-(गंधव्व ) के० मृदंगधर गंधर्वनु, ( नट्ट ) के० नत्य करनार नाटकीयानु, ( हय ) के० घोडानु, ( गय ) के हाथीनु, . ( रह ) के० रथर्नु अने ( भड ) के० सुभटनु. ए छ प्रकरनां ( अणियाणि ) के० कटको ( सबइंदाणं ) के० सर्वे इन्द्रोने होय छे, परंतु (वेमाणियाण ) के० वैमाधिक इन्द्रोने सातमु कटक (वसहा ) के० वृषभर्नु होय छे. (य) के० अने (अहोनिवासीणं) के० भुवनाति तथा व्यंतर इन्द्रोने सातमुं कटक (महिसा) के० महिष एटले पाडानुं होय छे. ॥५०॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy