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________________ २५९ आवे, तहा के० तेमज ( आहारो ) के० आहार पण पहेलेज समये उदय आये. ( बकाइ ) के० वक्रगतिये ( बीयसमए) के० बीजा समये ( परभवियार्ड) के० परभवनुं आयुष्य तथा आहार (उदयमेई ) के० उदय आवे छे. ते एक समयनी वक्रगति जाणवी. बोजी वक्राएं त्रण समय लागे त्रीजी, वनाए चार समय लागे. अने चोथी चक्राए पांच समय लागे. अहिं प्रथम समये अने अंत समये जीवने आहारक जाणवो. वचला एक वे ऋण समये अनाहारक होय छे. ॥ ४६७ || एज़ बात आगलनी गाथाथी कहे छे. इगदुति च वकासु, दुगाइसम एसु परभवाहारो ॥ दुगवक्काइस समया, इगदोतिन्निय अगाहारा ||४६८॥ ३२८ अर्थ - ( इगदुति वकासु ) के० एक वे ऋण अने चार समयनी वक्रगतिये जीव ( दुगाइ समए) के० वे आदि समयने विषे ( परभवाहारो ) के० परभवनो आहार करे छे. एटले एक समयनी वक्रगतिये वीजे समये, समयनी वक्रगतिये वाजे समये, त्रण समयनी वक्रगतिये चोथे समये, अने चार समयनी वक्रगविये पांचमें समये परभवनो आहार करे छे. (दुगवकाइ ) के० बेसमयादिक वक्रगतिमां ( इगदोतिनिय ) के० एक, बे, त्रण विगेरे समय सुधी जीव (अणाहारा ) के० अनाहारक होय. ॥ ४६८ ॥ बहुकालवेयणिज्जं, कम्पं अप्पेण जमिह कालेणं ॥ वेइज्जइ जुग चिय, उन्न सवप्पएसंगं ॥ ४६९ ।। ३२ अपवत्तणिज्जमेयं, आउं अहवा असेसकम्मपि ॥ बंधसमवि बद्धं, सिढिलं चिय तं जहा जोगं || ४७० ॥ 3२
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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