________________
२५५ देखाय छे. तथा ( गमुभया) के० गर्भज पंचेंद्रीतिर्यच अने गर्भज पंचेंद्री मनुष्य ए बन्नेने संतृत अने विवृत एटले ढांकेली अने प्रगट एम प्रकारे योनी होय छे. ॥ ४६० ॥
वली पण योनीना भेद कहे छे. अचित्तजोणि सुरनिरय, मीस गब्भे तिभेय सेसाणं ॥3 सी उसिण निरय सुरगब्भ,मीसत्ते उसीण सेस तिहा४६१॥3 ____अर्थ-(सुर ) के० देवता अने (निरय ) के० नारकी तेमनी (अचित्तजोणि ) के० अचित्तयोनी होय छे. जोके सूक्ष्म जीव तो सर्वलोक व्यापी छे तो पण सूक्ष्म एकेंद्री जीवने प्रदेशे ते क्षेत्र संबंध नथी. तथा ( गम्भे ) के० गर्भज तिर्यच अने गर्भज मनुप्यने (मोस ) के० मीश्र एटले सचित अचित होय छे. शुक्र ऋतु रुधिर संग्राह्य सचित्त अने बीजी अचित जाणवी. ( सेसाणं ) के० एकेंद्री, बेंद्री, तेंद्री, चउरेंद्री,समूच्छिम पंचेंद्री तिर्यच अने संमूछिम पंचेंद्री मनुष्य एटलानी (तिभेय ) के० सचिन अचित्त अने मिश्र योनी होय छे. जीवती गाय विगेरेना शरीरे क्रमी उपजे ते सचित्त योनी जाणवी, सूका लाकडामां घुण विगेरे उपजे.ते अचित्त योनी जाणवी, अर्द्ध सूका लाकडा तथा गाय विगेरे शरीरना क्षत्तादिकमां घुण क्रमि विगेरे उपजे ते मिश्र योनी जाणवी. ( निरय ) के० नारकीजीवोने केटलाकने (सी) के० शीतयोनी अने केटलाकने ( उसिण ) के० उष्ण योनी होय छे. ( सुर ) के० देवनाने तया ( गम्भ ) के० गर्भज तिर्यंच अने गर्भज मनुष्यने ( मीस) के० शीत अने उष्ण एम मिश्रयोनी होय छे. ( ते ) के० तेउकाय जीवोने एक उष्ण योनी होय छे. (सेस) के० बाकी रहेला जे पृथ्वी, आ, वाउ, वनस्पति, संमूच्छिम तिर्यंच अने संमूच्छिम