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________________ २५३ के० सात सात लाख योनि होय छे. तथा ( वण पत्तेय ) के० प्रत्येक वनस्पतिकायने (दश ) दशलाख योनि होय छे. अने (अणंत) के. साधारण वनस्पतिकायने (चउद) के० चउद लाख योनि होय छे. वली (विगले) के० बेंद्री तेंद्री अने चउरेंद्रीने दरेकने (दुद) के० बेबे लाख योनि होय छे. तथा (सुरनारय तिरि) के देवता नारकी अने पंचेंद्री निर्यचने (चउ चउ.) के० चार चार लाख योनि हाय छे. अने (नरेसु) के० मनुष्यने विषे (चउदस) के० चउद लाख योनि होय छे. ॥ ४५७॥ अहिं चोराशी लाख योनि संख्यानी गणती करतो सामान्यपणे योनि जातिये करी एक जीव निकायमा जेनो वर्ण, गंध रस अने स्पर्श सरखो होय ते एक जातियोनिमां ग्रहण कराय. तेवा सर्व मली चोराशी लाख भेद थाय छे.॥ ___ हवे एक एक योनिमां कुल होय ते कहे छे. एगिदिएसु पंचसु, बार सगति सत्त अट्ठवीसा य ॥ विगलेसु सत्त अड नवाजल खह चउपय उरगभुयगे॥४५८ अद्धतेरस बारस, दस दस नवगंनरामरे निरए । बारस छवीस पणवीस,हुंति कुलकोडि लक्खाइं ॥४५९॥3 इगकोडि सत्त नवई, लक्खा सहा कुलाण कोडीणं ॥३५ ___ अर्थ-(पंचसु एगिदिएसु )के० पांच एकेंद्रिय एटले पृथ्वी अप तेउ वाउ अने वनस्पतिकायने विषे अनुक्रमे करीने (बार) के० बार लाख, ( सग) के० सात लाख, (ति )के० त्रण लाख, ( सत्त) के० सात लाख अने ( अट्ठावीसा ) के० अहोवीश लाख कुल कोटी जाणवी. ( विगलेसु) के० विकलेंद्रीं एटले बेंद्री तेंद्री
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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