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________________ हवे एके द्रियने उसजवा तथा चवानी संख्या कहे छे. । अणुसमय प्रसंखिज्जा, एगिदिय हुँति य चति ॥४३५॥ वणकाइओ अणंता, इकिकाओवि जं निगोयाओ॥ निचमसंखो भागो, अणंतजीवो चयइ एइ ।। ४३६ ॥५८. . अर्थ-( एगिदिय ) के० एकेन्द्रिय जीवो (अणुसमयं ) के० समय समय प्रत्ये ( असंखिज्जा ) के० असंख्याता ( हुंति ) के० उपजे. य के० अने ( चवंति ) के० चरे. ॥ ४३५ ॥ वली (वणकाइओ) के. वनस्पतिकाय जीवो प्रतिसमये ( अणंता ) के० अनंता उपजे अने अनंना चहे. भावार्थ ए छे के वनस्पतिकायमांथी वनस्पतिकाय उपजे तो अनंता, अने बाकीना पृथ्व्यादि चार स्थावरमांयी वनसतिमां. उपजे तो असंख्याता उपजे एम जाणवु. (ज) के जे कारण माटे (इक्विकाओवि निगोयाओ) के० एक एक एवा निगोदमांथी (निच्च ) के० निरन्तर (असंखो भागो) के० असंख्यातमो भाग जे ( अगंतजीवो ) के० अनंत जीवात्मक ते (वयंइ ) के० चवे छे. अने (एइ) के० उपजे छे. अहिं निगोद ते अनंता जीवोनु एक साधारण औदारिक शरीर स्तिकाकार एटले पाणीना परपोटा सरखं ते निगोद जाणवू. ते निगोदीया अनेता जीवो साथे श्वासोश्वास लहे . अथवा आहार करे छे. तेवा असंख्याता निगोद समुदायने गोलो कहेवाय, तेवा गोला चउदराज लोक असंख्याता छ. ।। ४३६ ॥ गोला य असंखिज्जा, असंख निगोयओ हवइ गोलो॥ इकिमि निगोए, अगंतजीवा मुणेयव्वा ॥ ४३७॥५८ अर्थ संसारमा ( असंखिज्जा गोला) के० असंख्याता ले पाणीना मा श्वासोश्वास गोलो कहेवार
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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