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________________ चकासिछत्तदंडा, आयुर्घसालाई हुंति चत्तारि॥ कागिणिचम्ममणिओ, सिरिगेहे चकिणो हंति ॥३९४|| अर्थ-( चक्किगो) के० चक्रवर्तीनी ( आयुधसालाइं) के० आयुधशालाने विषे ( चक्कासिछत्तदंडा ) के० चक्र खड्ग छत्र अने दंड ए ( चत्तारि ) के चार रत्नो (हुंति ) के० उत्पन्न थयेला होय छे. तथा ( कागिणि चम्ममणिओ ) के० कागिणि चर्म अने मणि ए त्रण रत्नो ( सिरिंगेहे हुति ) के० लक्ष्मीना घरने विषे अर्थात् भंडारने विवे उत्पन्न थयेलां होय छे. ॥ ३९४ ॥ सेणावइ गाहावइ, पुरोहिअ वढइ य नियनयरे ॥ त्थरियगं रायकुले, वियद्वतले उ करितुरया ॥ ३९५ ॥ ___ अर्थ-(सेगावइ ) के० सेनापति, (गाहावइ ) के० गाथापति, ( पुरोहिअ ) के० पुरोहित अने ( वढइय ) के० वाद्धकि र चार रत्नो ( नियनयरे) के० पोतानां नगरने विषे उत्पन्न थयेला होय छे. ( त्योरयणं ) के० स्त्रोरत्न (रोयकुले ) के० राजकुलमां उत्पन्न थपेलं होय छे अने (करितुरया ) के० हस्ती अने अश्व ए बे रत्न (वियड्डतले ) के० चैताढय पर्वतने विषे उत्पन्न थयेलां होय छे. ॥ ३९५ ॥ चक्किदुगं हरिपणगं, पणगं चकी य केसवो चक्की ॥ केसव चक्की केसव, दुचकी केसव चक्की य ॥३९६ ॥ ५ ___ अर्थ-पहेला (चकिदुगं) के बे चक्रवर्ती, त्यार पछी (हरिपणगं) के पांच वासुदेव, त्यार पछी ( पणगं चक्की ) के० पांच चक्रवर्ती, त्यार पछी (केसव) के० एक वासुदेव, त्यार पछी (चको) के० एक चक्रवर्ती, त्यार पछी ( केसव ) के० एक वासुदेव, त्यार
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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