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________________ २०६ अर्थ - ( पुढवी ) के० पहेली नरक पृथ्वीना डिमांथी (विसहस्णा) के० एक हजार उपरथी अने एक हजार नीचेथी एम वे हजार योजन ओछा करीये. पछी दरेक प्रतर त्रण त्रण हजार योजन उंचा छे माटे ( तिसहस्स गुणिएहि ) के० त्रण हजारवडे गुणेला ( निययपयरे हि ) के० पोतपोताना प्रतरोनी जे संख्या थाय ते ( ऊणा ) के० ओछी करवी. पछो ( रूवूण ) के० एक रूप करीने ( नियपयरभाईया ) के० पोत पोताना प्रतरना जेटला आंतरा होय art भागाकार करat एटले (पत्थरयं) के० मतर प्रतरनुं अंतर प्रमाण थाय छे. ॥ ३६३ ॥ उदाहरणथी स्पष्ट समजावे के के रत्नप्रभा पृथ्वीनो पिंड एक लाख ऐंशी हजार योजननो छे, तेमांथी बे हजार योजन arora एटले बाकी एक लाख अट्ठोतेर हजार रहे. हवे ए पृथ्वीना तेर प्रतर छे ते दरेक ऋण ऋण हजार योजन उंचा छे माटे तेरने त्रण हजारे गुणीये त्यारे ओगणचालीस हजार थाय. एटला एक लाख अट्ठोतेर हजारमाथी काढीये बाकी एक लाख ओगणचालीश हजार रहे, तेने तेर प्रतरनी वचमां वार आंतरा छे, माटे बारे भाग आपीये एटले एक एक आंतरे अगीयार हजार पांचसो अने व्याशी योजन, अने ते उपर एक योजनना ऋण भाग करीये तेवो एक भाग एटलं रत्नप्रभाना प्रत प्रतर बच्चे अन्तर जाणवुं. एवीज रीते बीजी नरक पृथ्वीओने विषे पण पोतपोताना प्रतरे भाग दीधाथी जेक आवे ते प्रत्येके अन्तर जाणवुं. एज आगली गाथाथी कहे छे. तेसीया पंचसया, इकारस चेव जोयणसहस्सा ॥ रयणाए पत्थडंतर - मेगो चिय जोय गतिभागो ॥ ३६४|| अर्थ - ( रयणाए ) के० पहेली रत्नप्रभा पृथ्वीमां (इकारस 9
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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