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________________ २०४ वासो [अंतो वट्टा] के० महिला भागमां गोलाकार, (वहिं चउरंसा) के० बहार चोरस अने (हिट्ठा ) के० नीचे ( खूरप्पसंठाणा ) के० खूसला एरले घास कापवान एक जातना हथीयार सरखा आकाखाला अने [ परमदुग्गंधा ] के. अत्यंत दुर्गधमय [ संठीया ] के रहेला छे. ते नरकावासा देवलोकना आवलिकागत विमाननो पेठे वृत्त त्रिखूणा अने चोखूणा अनुक्रमे जाणघा. अने पुष्पावकीर्ण नरकाबासा अनेकाकारना संस्थानवाला जाणवा. ॥ ३५९ ॥ हवे नरकावासानु लावाणु पहोलपणुं अने उंचपणु कहे छे. तिसहस्सुना सव्वे, संखमसंखिन्ज वित्थडायामा । पणयाललक्ख सी-तओय लक्खं अपाणो॥३६०॥ . अर्थ-साते नरकयोमा जेटला नरकावासा छे ते ( सन्के) #. सब नरकावासा [तिसहस्सुबा] के त्रग हजार योजन उंचा 2. तया (वित्थडायामा) के० पहोलाइझगे अने लम्बाइपणे [संवमसंखिज ] के कोइक संख्याता योजन अने कोइक असंख्याता योजन छे, पण तेमां [ सोभतो ] के. प्रथम सीमन्त नामनो इन्द्रक नरकावासो [पणयाललक व के० पीतालोश लाख योजन लांबो अने पहोलो छ. [ य ] के. अने [ आइट्ठाणो ] के० छेलो अपातष्ठान इन्द्रक नरकावास [ लक्वं ] के एक ; ला व योजन लांबो अने पहोलो के. ए अपइठाणाने फरता काल विगेरे चार नर कावासा छे ते लांबागे पहोलपगे अने फरता परीधिये असंख्याता कोडाकोडा योजन जाणवा. ॥ ३६०॥ हिलो घणो सहस्सं, उप्पिसे कुटुओ सहस्सं तु ॥ मज्झे सहस्स सुसिरा,तिनि सहस्सुच्चया निरया।।३६१||
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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