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उवरि खिइ ठिइ विसेसो,सगपयर विहत्तु इच्छ संगुणिओ॥ उवरिमखिइ ठिइ सहिओ,इच्छियपयरंमि उक्कोसा।।३१२॥ ___ अर्थ-(उवरि खिइ) के० उपरनी पृथ्वीनी (ठिइ) के० उत्कृष्टी स्थितिने (इत्थ) के० वांछित नरकपृथ्वीनी उत्कृष्टी स्थिति साथे (विस्सो)के० विश्लेव करवो एटलेअधिक स्थितिमांथो ओछीस्थिति काही नाखवी. पछी ते विश्लेष एटलेवधेला आंकने ( सगपयर) केव्वांछित पृथ्वीना प्रतरे (विहत्त)के०वेहेंचीए. ते व्हेंचतां जे आंक आवे तेने (इच्छ) के० ईष्ट प्रतरनी संख्याये (संगुणिओ) के० गुणीये. ते गुणतां जे आंक आवे ते (वरिमखिइ) के उपरनी पृथ्वीनी (ठिइस हिओ) के० उत्कृष्टी स्थितिए सहित करीए त्यारे (हच्छिय. पयरम्मि) उक्कोसा के० वांछित प्रतरे उत्कृष्टी स्थिति थाय. ॥३१२॥
तेज वात उदाहरण सहित समजावे छे के-वीजी शर्करा प्रभाने विषे उत्कृष्टी स्थिति त्रण सागरोपमनी छे अने पहेली रत्नप्रभानी उत्कृष्टी स्थिति एक सागरोपमनी छे ते त्रण सागरोपममांथी काढी नाखीये त्यारे बाकी बे रहे. ते बे सागरोपमने शर्करामभाना अगीयार प्रतरे भाग आपीये. त्यारे एक एक प्रतरे एक एक सागरोपमना अगीयारीया बबे भोग आवे. प्रथम प्रतरे फक्त बेज भाग क्थे तेने उपरनी रत्नप्रभानी एक सागरोपमनी स्थिति साथे जोडीये त्यारे शर्करामभाना प्रथम प्रतरे एक सागरोपम अने एक सागरोपमना अगीयारीया भाग उपर आबे, एटली शर्करामभाना प्रथम प्रतरे उत्कृष्टी स्थिति जाणवी. एरीते दरेक प्रतरे बेबे भाग वधारता अगीयारमे प्रतरे त्रण सागरोपम पूर्णायु थाय. अने पहेला प्रतरनी उत्कृष्टी स्थिति ने बीजे प्रतरे जघन्य स्थिति जाणवी. एज प्रमाणे त्रीजी चोथी पांचमी अने छठी नरक पृथ्वीनुं करण करवू. ए सर्व नरक पृथ्वीनुं आयुष्य प्रमाण यन्त्रमा छे. त्यांथी जाणीलेQ