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पंचासी ॥ इय संखा देवीओ, चवंति इंदस्स
जम्मंमि ॥
१३ ॥
अर्थः- ( दो कोडाकीडीओ ) के० वे क्रोडाक्रोड, (पंचासीकोडीलक्ख ) के० पंचाशी क्रोड लाख, ( इगसयरि कोडी सहस्स ) के० एकोतेर क्रोड हजार, ( चउकोडि सयाण ) के० चार सो क्रोड अने ( अडवीस कोडीणं ) के० अठावीस क्रोड ॥ १२ ॥ ( सत्तावन्नं लक्खा ) के० संत्तावन लाख, ( चउदस सहस्सा ) के० चउद हजार ( य ) के० अने ( दुसय पंचासी ) के० बसो पंचाशी. २८५७१४२८५७१४२८५ ( इय संखा देवीओ) के० एटली देवीओनी संख्या इंदस्स जम्मंमि के० ॥ एक इंद्रना भवमां ( चवंति ) के० मरण पामे छे. ॥ १३ ॥
ed वैमानिक देवीओनुं जघन्य तथा उत्कृष्ट आयुष्य एक गाथाथी कहे छे.
पलियं अहियं च कमा, ठिई जहन्ना इओ य
उक्कोसा ॥ पलियाई सत्तपन्नास, तहय नव पंचवन्नाय ॥ १४ ॥
१.
अर्थः- सौधर्म देवलोकने विषे ( इओ) के० ए परिग्रहीता तथा अपरिग्रहीता देवीओनी ( जहन्ना ठिइ ) के० जघन्य आयुष्य (पलियं ) के० एक पल्यो मनुं, (च) के० ईशान देवलोकने विषे परिग्रहीता तथा अपरिगृहीता देवीओनुं जवन्य आयुष्य ( अहियं ) के० एक पल्योपथी कांक अधिक ( कमा ) के० अनुक्रमे करीने जाणवु. तथा सौधर्म देवलोके परिग्रहीता देवीओनुं (उकोसा ) के० उत्कृष्ट आयुष्य (पलियाई सत्त) के० सात