________________
भयरूवो ) के सचित्त अचित्त अने सचित्ताचित एटले मिश्र एम त्रण प्रकारनो ( आहार ) के० आहार होय छे. (तहा ) के० तेमज ( सबनराणं) के० सर्व-मनुष्योने पणे त्रण प्रकारनो आहार होय छे. ( च ) के० अने: ( सुरनेरइयाण ) के० देवता तथा नारकीने ( अचित्तो ) के० अचित्तः आहार होय छे. ॥ २८८ ॥
आभोगाणाभोगा. सव्वेसि होइ लोमआहारो ।। निरयाणं अमणुनो, परिणमइ सुराण समणुनो ॥२८९॥२० ____ अर्थ-जेम वर्षाकालमां शीतल पुद्गलनो स्पर्श थवाथी बहुमत्र प्रसवे. तेम सर्व जीवोने पर्याप्तावस्थामां तो अजाणपणे आहार परिणमे, परंतु पर्याप्तावस्थाये ( सव्वेसि ) के० सर्वे जीवोने कोइ वखते ( लोमआहारो ) के० लोमाहार ( आभोग ) के० जाणतां अने कोइ वखते ( अणाभोग ) के० अजाणतां (होइ ) के० होय छे. तेमां एकंद्रियने तथा समुच्छिम मनुष्यने मनरहितपणाने लीधे सर्वथा अजाणतांज आहार परिणमे छे. बली (निरयाणं) के० नारकीने अशुभकर्मना उदयथी (अणुनो) के० अमनोज्ञ एटले मनने सारो न लागे तेवो आहार (परिणमइ ) के० परिणमे छे अने (सुराणं) के देवताओने शुभकर्मोदयथी (समणुनो) के० मनोज्ञ एटले मनने सारो लागे तेवो आहार परिणमे छे. ॥ २८९ ॥ ___ हवे नारकी तिर्यंच तथा मनुष्यने आहार- काल मान एटले अंतर कहे छे. तह विगलनारयाणं, अंतमुहत्तो स होइ उक्कोसो॥ पंचिंदितिरिनराणं, साहाविय छठ अट्ठमओ ॥ २९० ॥२०
अर्थ-(तह) के० तेमन (विगल ) के बेइंद्रि तेइंद्रि अने चउ