SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६२ ऊणं ) के० यावत् एक सागरोपममां कांइक ओर्छ आयुष्य होय ते देवताने ( दिवस मुहुत्तपत्ता ) के० दिवस पृथक्त्वे अने मुहूर्तपृथक्ले ( आहारूसास ) के० आहार अने श्वासोश्वास होय छे. भावार्थ ए छे के-दश हजार वर्षथी उपरांत एक समयादिकनी वृद्धिये अनुक्रमे दिवस पृथक्त्वे आहार अने मुहूर्त पृथक्त्वे उश्वास वधारतां जq ते त्यांसुधा धारवु के-ज्यांसुधी पूर्ण सागरोपमायु प्रत्ये पक्षथी उश्वास अने एक हजार वर्षथी आहार थाय. (सेसाणं) के० बीजा देवतार्नु पण एज प्रमाणे जाणवू. ॥ २८४ ॥ ___ हवे आहारना त्रण भेद कहे छे. सरिरेणोयाहारो, तयाय फासेण लोमआहारो॥ पक्खेवाहारो पुण, कावलिओ होइ नायब्बो ॥२८५॥ ___ अर्थ-( सरिरेण ) के० फक्त शरीरथी जे आहार थाय ते ओयाहारो के० ओजाहार कहेवाय. जोके शरीर तो पांच जातना छे तोपण जीव तेजस अने कार्मण शरीरे करी उत्पत्ति प्रदेशे आवीने पूर्वना शरीरने त्यजी दे. विग्रह अथवा अविग्रह गतिवालो जीव प्रथम समये औदारिक शरीर योग्य पुद्गलाहार करे अने बीजा समयथी औरंभी कार्मण साथे ज्यांसुधी पूर्ण नीपजे त्यां औदारिक मिश्र आहार करे ते सर्व ओजसू केतां तेजमू शरीर तेगे करी आहार करे ते प्रथम ओजाहार कहेवाय. ( तयायफासेण ) के० त्वचा एटले चामडी द्वारा सजेंद्रिये करीने करातो आहोर जेमके शरीरे तेल चोपडवाथी चोकाश थाय, शरीरे पाणी छांटवाथो तृषा शांति थाय ते (लोम आहारो )के० लोमाहार कहेवाय. (पुण)के वली ( पक्खेवाहारो ) के० प्रक्षेपाहार ते (कावलिओ होइ)के०कोलोया मुवमा नाखवा रूप कालाहार (नायबो)के जागवो ॥२८५।। तेज वात आ नीचेनी गाथाथी कहे छे.
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy