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चउक्के ॥ १०॥ इगतीस सागराई, सबढे पुण जहन्नठिइ नत्थि ॥ ___ अर्थः-(सोहम्मे ) के० सौधर्म देवलोकने विषे देवताओनी (जहन्नहिई) के. जघन्य आयुष्य (पलियं ) के एक पल्योपमर्नु होय छे. आ आयुष्य सौधर्म देवलोकना तेरे प्रतरमां निवास करनारानुं जाणवू. (च) के० अने (ईसाणे) के० ईशान देवलोकने विषे एक पल्योपम तथा (अहियं ) के० एक पल्योपमनी असं.. ख्यातमो भाग अधिक होय छे ॥ ९॥ त्रीजा सनत्कुमार देवलोके (दो) के० बे सागरोपमर्नु अने चोथा माहेन्द्रदेवलोके बे सागरोपम अने ( साहि ) के० काइक अधिक होय छे. पांचमा ब्रह्म देवलोके ( सत्त) के० सात सागरोपमनु, छठा लांतक देवलोके दस के० दश सागरोपमनु, सातमा शुक्र देवलोके ( चउदस ) के० चउद सागरोपमर्नु, एम ( जा सहस्सारो) के० यावत् आठमा सहस्रार देवलोकने विषे ( सत्तर अयराई) के० सत्तर सागरोपमर्नु जघन्य आयुष्य होय छे. (तप्परओ) के० तेथी उपर आनतादि देवलोकने विषे (इक्विकं अहियं ) के एक एक सागरोपम वधारता जवु. ते ( जा णुत्तरचउक्के) के. ज्यां सुधी चोथा अनुत्तर विमानने विषे एकत्रीश सागरोपमनुं जघन्य आयुष्य थाय छे. ते आ प्रमाणे-आनत देवलोके. अढार सागरोपमनु, प्राणत देवलोके ओगणीश सागरोपमनु, आरण देवलोके वीश सागरोपमर्नु, अने अच्युत देवलोके एकवीश सोगरोपमर्नु जघन्य आयुष्य थाय छे. त्यारपछी नवे ग्रैवेयके एक एक सागरोपम वधारतां नवमे ग्रैवेयके त्रीश सागरोपमर्नु जघन्य आयुष्य होय. त्यार पछी विजय वैजयंत जयंत अने अपराजित ए चार अनुत्तर विमाने-॥ १०॥ (इग