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प्राप्त करता है-ऐसा विधान किया है । स्वजन का श्वजन, सकलका शकल, सकृत् का सकृत-ऐसा भिन्नार्थक शब्दोंका उच्चारण नहीं हो, इसलिये किसी पण्डितने अपने पुत्रको व्याकरण पढ़नेका उपदेश किया है । ( यद्यपि बहु नाऽधीषे तथापि पठ पुत्र! व्याकरणम् । स्वजनः श्वजनो मा भूत् सकलं शकलं सकृत् शकृत =हे पुत्र ! यदि अधिक पढ़ना नहीं है, तो भी. व्याकरण पढो, जिससे स्वजन आदि शब्दों का श्वजन आदि न होजाय ।) भावार्थ यह है कि व्याकरणसे अनभिज्ञ लोग शुद्ध उच्चारण नहीं कर सकते । अतः ऊपरके उद्धरणोंसे यह स्पष्ट है कि शब्दोंका ज्ञान, अन्यशास्त्रोंमें प्रवेश तथा शुद्ध उच्चारणके लिये व्याकरणका सर्वप्रथम अध्ययन आवश्यक है ।।
आज जबकी संस्कृत भाषा बोलचालकी भाषा नहीं रही, . इस स्थितिमें संस्कृतवाङ्मय एकमात्र व्याकरणके आधारपर ही टिका हुआ है, यह निर्विवाद है । इसलिये संस्कृत वाङमयमें प्रवेशके लिये व्याकरणका सहारा आवश्यक ही नहीं, मूलभूत साधन है-. यह बात स्वयंसिद्ध है । इस दृष्टिसे ही लोग सर्व प्रथम व्याकरणके अध्ययन में ही प्रवृत्त होते हैं । इस प्रकार व्यवहारसे भी उपरोक्त बातें प्रमाणित होती हैं। ___इस संस्कृत व्याकरणमें भी कारकका महत्त्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि यह वाक्योपयोगी प्रकरण है । अन्य प्रकरण नाम तथा धातुके आधारसे पदोंकी सिद्धिके लिये उपयोगी हैं। इससे स्पष्ट है कि-कारकके ज्ञानके विना संस्कृत वाक्य अच्छी तरह समझे